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________________ [ प्रज्ञापनासूत्र १६१९. जस्स णं भंते ! जीवस्स काइया आयोजित किरिया अस्थि तस्स आहिरकरणिया आओजिया किरिया अत्थि ? जस्स आहिगरणिया आओजिया किरिया अत्थि तस्स काइया आओजिया किरिया अत्थि ? ५५२ ] एवं एतेणं अभिलावेणं ते चेव चत्तारि दंडगा भाणियव्वा जस्स १ जं समयं २ जं देसं ३ जं पदेसं ४ जाव वेमाणियाणं । [१६१९] भगवन् ! जिस जीव के कायिकी - आयोजिताक्रिया होती है, यथा उसके आधिकरणिकीआयोजित क्रिया होती है ? (और) जिसके आधिकरणिकी- आयोजिताक्रिया होती है, क्या उसके कायिकीआयोजिताक्रिया होती है ? [उ.] इस प्रकार (सू. १६०७ से १६१६ में उक्त आलापकों के समान यहाँ भी) इस (तथा अन्य अभिलाप के साथ (१) जिस जीव में, (२) जिस समय में, (३) जिस देश में और (४) जिस प्रदेश में- ये चारों दण्डक यावत् वैमानिकों तक कहने चाहिए । विवेचन - आयोजिताक्रियाएँ और उसका सहभाव - प्रस्तुत त्रिसूत्री (१६१७ से १६१९ तक) में पांच आयोजिताक्रियाओं का तथा जीव, समय, देश, प्रदेश के उसके परस्पर सहभाव का कथन अतिदेशपूर्वक किया गया है। आयोजिताक्रिया : विशेषार्थ जो क्रियाएँ जीव को संसार में आयोजित करने - जोड़ने वाली हैं अर्थात्- जो संसारपरिभ्रमण की कारणभूत हैं, वे आयोजिताक्रियाएँ कहलाती हैं। यद्यपि क्रियाएँ साक्षात् कर्मबन्धन की हेतु हैं, किन्तु परम्परा से वे संसार की कारण भी हैं। क्योंकि ज्ञानावरणीयादि कर्मबन्ध संसार का कारण है। इसीलिए उपचार से या परम्परा से ये क्रियाएँ भी संसार की कारण कही गई हैं। जीव में क्रियाओं के स्पृष्ट- अस्पृष्ट की चर्चा १६२०. जीवे णं भंते ! जं समयं काइयाए आहिगरणियाए पाओसियाए किरियाए पुट्ठे तं समयं पारियावणियाए किरियाए पुट्ठे ? पाणाइवायकिरियाए पुट्ठे ? गोमा ! अत्थेगइए जीव एगइयाओ जीवाओ जं समयं काइयाए आहिगरणियाए पाओसिया ए किरियाए पुट्ठे तं समयं पारियावणियाए किरियाए पुट्ठे पाणाइवायकिरियाए पुट्ठे १, अत्थेइए जीवे एगइयाओ जीवाओ जं समयं काइयाए आहिगरणियाए पादोसियाएं किरियाए पुट्ठे तं समयं पारियावणियाए किरियाए पुट्ठे पाणाड़वायकिरियाए अपुट्ठे २, अत्थेगइए जीवे एगइयाओ जीवाओ जं समयं काइयाए आहिगरणियाए पाओसियाए किरियाए पुट्ठे तं समयं पारियावणियाए किरियाए अपुट्ठे पाणाइवायकिरियाए अपुट्ठे ३, अत्थेगइए जीवे एगइयाओ जीवाओ जं समयं काइयाए आहिगरणियाए १. प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, पत्र ४४५
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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