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________________ बाईसवाँ क्रियापद ] आलापक के समान देश और प्रदेश में क्रिया-सहभाव सम्बन्धी आलापक कहने चाहिए ।" कायिकी आदि का परस्पर सहभाव : नियम से या विकल्प से ?- काय एक प्रकार का अधिकरण भी हो जाता है, इसलिए कायिकीक्रिया होने पर आधिकरणिकी अवश्यमेव होती है और आधिकरणिकी होने पर कायिकी भी अवश्य होती है और वह विशिष्ट कायिकीक्रिया प्रद्वेष के बिना नहीं होती, इसलिए प्राद्वेषिकीक्रिया के साथ भी कायिकी का अविनाभावसम्बन्ध है । वैसी क्रिया के समय शरीर पर प्रद्वेष के चिह्न ( वक्रता, रूक्षता, कठोरता आदि) स्पष्ट दृष्टिगोचर होते हैं । इसलिए कायिकी के साथ प्राद्वेषिकी प्रत्यक्षतः उपलब्ध होती है। प्रारम्भ की तीन क्रियाओं का सहभाव होने पर भी परितापन और प्राणातिपात इन दोनों के सहभाव का कोई नियम नहीं होता; क्योंकि जब कोई घातक वध्य मृगदि को धनुष खींच कर वाणादि से बींध देता है, उसके पश्चात् उसका परितापन या मरण होता है, अन्यथा नहीं। अतः इन दोनों का सहभाव नियम से नहीं होता । अर्थात् पारितापनिकी क्रिया के होने पर भी प्राणातिपातक्रिया कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं होती। जब बाण आदि के प्रहार से जीव को प्राणरहित कर दिया जाता है, तब प्राणातिपातक्रिया होती है, शेष समय में नहीं होती, किन्तु जिसके प्राणातिपातक्रिया होती है, उसके नियम से पारितापनिकीक्रिया होती है, क्योंकि परितापना के बिना प्राणघात असम्भव है । ३ जीव आदि में आयोजिताक्रिया की प्ररूपणा १६१७. कति णं भंते! आजोजिताओ किरियाओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! पंच आजोजिताओ किरियाओ पण्णत्ताओ । तं जहा किरिया । [५५१ १. पण्णवणासुत्तं (मूलपाठ - टिप्पणयुक्त) भा. १, पृ. ३५५- ३५६ २. ३. - [१६१७ प्र.] भगवन् ! आयोजिता ( जीव को संसार में आयोजित करने - जोड़ने वाली ) क्रियाएँ कितनी कही गई हैं ? . [उ.] गौतम ! आयोजिताक्रियाएँ पांच कही गई हैं, यथा- कायिकी यावत् प्राणातिपात क्रिया । १६१८. एवं णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं । [१६१८] नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक (इन पांचों आयोजिताक्रियाओं का ) इसी प्रकार (कथन करना चाहिए।) प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, पत्र ४४४-४४५ प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, पत्र ४४५ काइया जाव पाणाइवाय
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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