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[प्रज्ञापनासूत्र
आधिकरणिकीक्रिया होती है ? (तथा) जिस समय उसके आधिकरणिकीक्रिया होती है, क्या उस समय कायिकीक्रिया होती है ?
[उ.] (गौतम !) जिस प्रकार (सू. १६०७ से १६१३ तक में) क्रियाओं के परस्पर सहभाव के सम्बन्ध में प्रारम्भिक दण्डक कहा है, उसी प्रकार यहाँ भी वैमानिक तक कहना चाहिए।
१६१५. जं देसं णं भंते ! जीवस्स काइया किरिया कजति तं देसं णं आहिगरणिया किरिया कजति ?
तहेव जाव वेमाणियस्स।
[१६१५ प्र.] (भगवन् !) जिस देश में जीव के कायिकीक्रिया होती है, क्या उस देश में आधिकरणिकीक्रिया होती है ?
[उ.] (यहाँ भी) उसी (पूर्वोक्त सूत्रों की) तरह वैमानिक तक (कहना चाहिए।)
१६१६. [१] जं पएसं णं भंते ! जीवस्स काइया किरिया कजति तं पएसं आहिगरणिया किरिया कजति ?
एवं तहेव जाव वेमाणियस्स।
[१६१६-१ प्र.] (भगवन् !) जिस प्रदेश में जीव के कायिकीक्रिया होती है, क्या उस प्रदेश में . आधिकरणिकीक्रिया होती है ?
[उ.] (गौतम !) (यहाँ भी) उसी (पूर्वोक्त सूत्रों की) तरह वैमानिक तक (कहना चाहिए।) [२] एवं एते जस्स १, जं समयं २, जं देसं ३, जं पएसं णं ४ चत्तारि दंडगा होति।
[१६१६-२] इस प्रकार (१) जिस जीव के (२) जिस समय में (३) जिस देश में और (४) जिस प्रदेश में ये चार दण्डक होते हैं।
- विवेचन - क्रियाओं के परस्पर सहभाव की विचारणा - प्रस्तुत १०. सूत्रों (सू. २६०७ से १६१६ तक) में पूर्वोक्त पांच क्रियाओं के १. जीव, २. समय, ३. देश और ४. प्रदेश की दृष्टि से, परस्पर सहभाव की विचारणा की गई हैं।
निष्कर्ष - प्रारम्भ की तीन क्रियाएँ जीव में नियम से, परस्पर सहभाव के रूप में रहती हैं, किन्तु इन प्रारम्भिक तीन क्रियाओं के साथ आगे की दो क्रियाएँ कदाचित् रहती हैं, कदाचित् नहीं रहती हैं। मगर जिस जीव में आगे की दो क्रियाएँ होती हैं, उसमें प्रारम्भ की तीन क्रियाएँ अवश्य रहती हैं। प्राणातिपात और पारितापनिकी क्रिया एक जीव में कदाचित् एक साथ होती हैं, कदाचित् नहीं भी होती हैं। सामान्य जीव की तरह चौवीस दण्डकवर्ती जीवों में इन क्रियाओं के सहभाव के ये ही नियम हैं । जीव में क्रिया-सहभाव सम्बन्धी