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________________ बाईसवाँ क्रियापद ] [५४९ [१६११] इस प्रकार प्रारम्भ की तीन क्रियाओं का परस्पर सहभाव नियम से होता है। जिसके प्रारम्भ की तीन क्रियाएँ होती हैं, उसके आगे की दो क्रियाएँ (पारितापनिकी और प्राणातिपात क्रिया) कदाचित् होती हैं, कदाचित् नहीं होती हैं (परन्तु) जिसके आगे की दो क्रियाएँ होती हैं, उसके प्रारम्भ की तीन क्रियाएँ (कायिकी, आधिकरणिकी और प्राद्वेषिकी) नियम से होती हैं। १६१२. तस्स णं भंते ! जीवस्स पारियावणिया किरिया कज्जति तस्स पाणाइवायकिरिया कजति ? जस्स पाणाइवायकिरिया कजति तस्स पारियावणिया किरिया कंजंति ? गोयमा ! जस्स णं जीवस्स पारियावणिया किरिया कजति तस्स पाणाइवायकिरिया सिय कजति सिय णो कज्जति, जस्स पुण पाणाइवायकिरिया कजति तस्स पारियावणिया किरिया नियमा कज्जति। [१६१२ प्र.] भगवन् ! जिसके पारितापनिकीक्रिया होती है, क्या उसके प्राणातिपातक्रिया होती है ? (तथा) जिसके प्राणातिपातक्रिया होती है, क्या उसके पारितापनिकीक्रिया होती है ? . ___ [उ.] गौतम ! जिस जीव के पारितापनिकीक्रिया होती है, उसके प्राणातिपातक्रिया कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं भी होती है; किन्तु जिस जीव के प्राणातिपातक्रिया होती है, उसके पारितापनिकीक्रिया नियम से होती है। १६१३.[१] जस्स णं भंति ! णेरइयस्स काइया किरिया कजति तस्स आहिगरणिया किरिया कजति ? गोयमा ! जहेव जीवस्स (सु. १६०७-१२ ) तहेव णेरइयस्स वि। [१६१३-१ प्र.] भगवन् ! जिस नैरयिक के कायिकीक्रिया होती है क्या उसके आधिकरणिकीक्रिया होती है ? [उ.] गौतम ! जिस प्रकार (सू. १६०७ से १६१२ तक में) जीव (सामान्य) में (कायिकी आदि क्रियाओं के परस्पर सहभाव की चर्चा की है) उसी प्रकार नैरयिक के सम्बन्ध में भी (समझ लेनी चाहिए।) [२] एवं निरंतरं जाव वेमाणियस्स। [१६१३-२] इसी प्रकार (नारक के समान) वैमानिक तक (क्रियाओं के परस्पर सहभाव का कथन करना चाहिए।) १६१४. जं समयं णं भंते ! जीवस्स काइया किरिया कजति तं समयं आहिगरणिया किरिया कजति ? जं समयं आहिगरणिया किरिया कजति तं समयं काइया किरिया कजति ? एवं जहेव आइल्लओ दंडओ भणिओ (सु. १६०७-१३) तहेव भाणियव्वो जाव वेमाणियस्स। [१६१४ प्र.] भगवन् ! जिस समय जीव के कायिकीक्रिया होती है, क्या उस समय उसके
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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