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[प्रज्ञापनासूत्र
___[उ.] गौतम ! (वह) कदाचित् तीन क्रियाओं वाला, कदाचित् चार क्रियाओं वाला और कदाचित् पांच क्रियाओं वाला होता है।
१५९९.[१] णेरइए णं भंते ! णेरइएहितो कइकिरिए ?
गोयमा ! सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए। एवं जहेव पढमो दंडओ तहा एसो वि बितिओ भाणियव्यो।
[१५९९-१ प्र.] भगवन् ! एक नैरयिक, अनेक नैरयिकों की अपेक्षा से कितनी क्रियाओं वाला होता है?
[उ.] गौतम ! (वह) कदाचित् तीन क्रियाओं वाला और कदाचित् चार क्रियाओं वाला होता है। इस प्रकार जैसे प्रथम दण्डक कहा है उसी प्रकार यह द्वितीय दण्डक भी कहना चाहिए।
__ [२] एवं जाव वेमाणिएहितो । णवरं णेरइयस्स णेरइएहिंतो देवेहिंतो य पंचमा किरिया णत्थि ।
[१५९९-२] इसी प्रकार (पूर्वोक्त आलापक के समान) यावत् अनेक वैमानिकों की अपेक्षा से (क्रियासम्बन्धी आलापक कहने चाहिए।) विशेष यह है कि (एक) नैरयिक के (अनेक) नैरयिकों की अपेक्षा से (क्रिया सम्बन्धी आलापक में) पंचम क्रिया नहीं होती है।
१६००. णेरइया णं भंते ! जीवाओ कतिकिरिया ? गोयमा ! सिय तिकिरिया सिय चउकिरिया सिय पंचकिरिया। [१६०० प्र.] भगवन् ! (अनेक) नैरयिक, (एक) जीव की अपेक्षा से कितनी क्रियाओं वाले होते हैं ?
[उ.] गौतम ! कदाचित् तीन क्रियाओं वाले, कदाचित् चार क्रियाओं वाले और कदाचित् पांच क्रियाओं वाले होते हैं। । १६०१. एवं जाव वेमाणियाओ। णवरं णेरइयाओ देवाओ य पंचमा किरिया णत्थि।
। [१६०१] इसी प्रकार (पूर्वोक्त आलापक के समान एक असुरकुमार से ले कर) यावत् एक वैमानिक की अपेक्षा से (क्रियासम्बन्धी आलापक कहने चाहिए।) विशेष यह है कि (एक) नैरयिक या (एक) देव की अपेक्षा से (क्रियासम्बन्धी आलापक में) पंचम क्रिया नहीं होती।
१६०२. णेरइया णं भंते। जीवेहिंतो कतिकिरिया ? " गोयमा ! तिकिरिया वि चउकिरिया वि पंचकिरिया वि। [१६०२ प्र.] भगवन् ! (अनेक) नारक, (अनेक) जीवों की अपेक्षा से कितनी क्रियाओं वाले होते हैं?
[उ.] गौतम ! (वे) तीन क्रियाओं वाले भी होते हैं, चार क्रियाओं वाले भी और पांच क्रियाओं वाले भी होते हैं।