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________________ बाईसवाँ क्रियापद ] १६०३. [१ ∫णंरइया ण भतं : गरइएहिता' कातीकरिया ? गोयमा ! तिकिरिया वि चउकिरिया वि । [५४५ [१६०३-१ प्र.] भगवन् ! (अनेक) नैरयिक, (अनेक) नैरयिकों की अपेक्षा से कितनी क्रियाओं वाले होते हैं ? [उ.] गौतम ! (वे) तीन क्रियाओं वाले भी होते हैं और चार क्रियाओं वाले भी होते हैं। [२] एवं जाव वेमाणिएहिंतो । णवरं ओरालियसरीरेहिंतो जहा जीवेहिंतो (सु. १६०२ ) । [१६०३-२] इसी प्रकार (अनेक असुरकुमारों से लेकर) अनेक वैमानिकों की अपेक्षा से, क्रियासम्बन्धी आलापक कहने चाहिए। विशेष यह है कि अनेक औदारिकशरीरधारी जीवों की अपेक्षा से, (क्रियासम्बन्धी आलापक सू. १६०२ मे कथित अनेक) जीवों के क्रियासम्बन्धी आलापक के समान ( कहने चाहिए।) १६०४. [ १ ] असुरकुमारे णं भंते ! जीवातो कतिकिरिए ? गोयमा ! जहेव णेरइएणं चत्तारि दंडगा (सु. १५९६ - ९९ ) तहेव असुरकुमारेण वि चत्तारि दंडगा भाणियव्वा । एवं उवउज्जिऊण भावेयव्वं ति - जीवे मणूसे य अकिरिए वुच्चति, सेसा अकिरिया णं वुच्छंति, सव्वे जीवा ओरालियसरीरेहिंतो पंचकिरिया, णेरइय-देवेहिंतो य पंचकिरिया प्रण वुच्चति । [१६०४-१ प्र.] भगवन् ! (एक) असुरकुमार, एक जीव की अपेक्षा से कितनी क्रियाओं वाला होता है ? [उ.] गौतम ! जैसे (सू. १५९६ से १५९९ तक में एक) नारक की अपेक्षा से क्रियासम्बन्धी) चार दण्डक (कहे गए) हैं, वैसे ही (एक) असुरकुमार की अपेक्षा से भी (क्रियासम्बन्धी) चार दण्डक कहने चाहिए। इस प्रकार का उपयोग लगाकर विचार कर लेना चाहिए कि एक जीव और एक मनुष्य ही अक्रिय कहा जाता है, शेष सभी जीव अक्रिय नहीं कहे जाते । सर्व जीव, औदारिक शरीरधारी अनेक जीवों की अपेक्षा सेपांच क्रिया वाले होते हैं। नारकों और देवों की अपेक्षा से पांच क्रियाओं वाले नहीं कहे जाते । T [ २ ] एवं एक्क्कजीवपए चत्तारि चत्तारि दंडगा भाणियव्वा । एवं एयं दंडगसयं । सव्वे वि य जीवादीया दंडगा । [१६०४-२] इस प्रकार एक-एक जीव के पद में चार-चार दण्डक कहने चाहिए । यों कुल मिलाकर सडक होते हैं। ये सब एक जीव आदि से सम्बन्धित दण्डक हैं। विवेचन - जीवों को दूसरे जीवों की अपेक्षा से लगने वाली क्रियाओं की प्ररूपणा - प्रस्तुत
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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