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बाईसवाँ क्रियापद ]
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वाले होते हैं ?
[उ.] गौतम ! (वे) तीन क्रियाओं वाले भी होते हैं, चार क्रियाओं वाले भी और अक्रिय भी होते हैं।
[२] असुरकुमारेहितो वि एवं चेव जाव वेमाणिएहितो ।[णवरं] ओरालियसरीरेहिंतो जहा जीवेहितो (सु. १५९४)।
[१५९५-२ प्र.] इसी प्रकार (पूर्वोक्त आलापक के समान) अनेक जीवों के अनेक असुरकुमारों से (ले कर) यावत् (अनेक) वैमानिकों की अपेक्षा से (क्रियासम्बन्धी आलापक कहने चाहिए।) विशेष यह है कि (अनेक) औदारिकशरीरधारकों (पृथ्वीकायिकादि पांच स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय, तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय एवं मनुष्यों) की अपेक्षा से (जब क्रियासम्बन्धी आलापक कहने हों, तब सू. १५९४ में उक्त अनेक) जीवों की अपेक्षा से क्रियासम्बन्धी आलापक के समान (कहने चाहिए।)
१५९६. णेरइए णं भंते ! जीवाओ कतिकिरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए। [१५९६ प्र.] भगवन् ! (एक) नैरयिक, (एक) जीव की अपेक्षा से कितनी क्रिया वाला होता है ?
[उ.] गौतम ! (वह) कदाचित् तीन क्रियाओं वाला, कदाचित् चार क्रियाओं वाला और कदाचित् पांच क्रियाओं वाला होता है।
१५९७. [१] णेरइए णं भंते ! णेरइयाओ कतिकिरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए । [१५९७-१ प्र.] भगवन् ! (एक) नैरयिक (एक) नैरयिक की अपेक्षा से कितनी क्रियाओं वाला होता
[उ.] गौतम ! (वह) कदाचित् तीन क्रियाओं वाला और कदाचित् चार क्रियाओं वाला होता है। [२] एवं जाव वेमाणियाओ ! णवरं ओरालियसरीराओ जहा जीवाओ (सु. १५९६)।
[१५९७-२] इसी प्रकार (पूर्वोक्त आलापक के समान एक असुरकुमार से लेकर) यावत् एक वैमानिक की अपेक्षा से (क्रियासम्बन्धी आलापक कहने चाहिए।) विशेष यह है कि (एक) औदारिकशरीरधारक जीव की अपेक्षा से (जब क्रियासम्बन्धी आलापक कहने हों, तब सू. १५९६ में कथित एक) जीव की अपेक्षा से (क्रियासम्बन्धी आलापक) के समान (कहने चाहिए।) ..
१५९८. णेरइए णं भंते ! जीवेहिंतो कइकिरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए सिय चउकिरिएि सिय पंचकिरिए। [१५९८ प्र.] भगवन् ! (एक) नारक, (अनेक) जीवों की अपेक्षा से कितनी क्रियाओं वाला होता है? .