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[ प्रज्ञापनासूत्र क्रियाओं वाला और कदाचित् अक्रिय होता है।
१५९१. जीवे णं भंते ! णेरइहितो कतिकिरिए ?
गोयमा ! सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए सिय अकिरिए। एवं जहेव पढमो दंडओ तहा एसो वि वितिओ भाणियव्वो।
[१५९१ प्र.] भगवन् ! (एक) जीव, (अनेक) नैरयिकों की अपेक्षा से कितनी क्रियाओं वाला होता
[उ.] गौतम ! कदाचित् तीन क्रियाओं वाला, कदाचित् चार क्रियाओं वाला और कदाचित् अक्रिय होता है। इस प्रकार जैसा प्रथम दंडक है वैसे ही यह द्वितीय दंडक भी कहना चाहिये।
१५९२. जीवा णं भंते ! जीवाओ कतिकिरिया ? गोयमा ! सिय तिकिरिया वि सिय चउकिरिया वि सिय पंचकिरिया वि सिय अकिरिया वि। [१५९२ प्र.] भगवन् ! (अनेक) जीव, (एक) जीव की अपेक्षा से कितनी क्रियाओं वाले होते हैं ?
[उ.] गौतम ! कदाचित् तीन क्रियाओं वाले, कदाचित् चार क्रियाओं वाले, कदाचित् पांच क्रियाओं वाले भी और कदाचित् अक्रिय होते हैं।
१५९३. जीवा णं भंते ! णेरइयाओ कतिकिरिया ? गोयमा ! जहेव आइल्लदंडओ तहेव भाणियव्वो जाव वेमाणिय त्ति। [१५९३ प्र.] भगवन् ! (अनेक) जीव, (एक) नैरयिक की अपेक्षा से कितनी क्रियाओं वाले होते हैं ?
[उ.] गौतम ! जिस प्रकार प्रारम्भिक दण्डक (सू. १५८९-१) में (कहा गया था,) उसी प्रकार से, (यह दण्डक भी) वैमानिक तक कहना चाहिए।
१५९४. जीवा णं भंते ! जीवेहिंतो कतिकिरिया ? गोयमा ! तिकिरिया वि चउकिरिया वि पंचकिरिया वि अकिरिया वि। [१५९४ प्र.] भगवन् ! (अनेक) जीव, (अनेक) जीवों की अपेक्षा से कितनी क्रियाओं वाले होते हैं ?
[उ.] गौतम ! (वे) तीन क्रियाओं वाले भी होते हैं, चार क्रियाओं वाले भी, पांच क्रियाओं वाले भी और अक्रिय भी होते हैं।
१५९५ [१] जीवा णं भंते ! णेरइएहितो कतिकिरिया ? गोयमा ! तिकिरिया वि चउकिरिया वि अकिरिया वि। [१५९५-१ प्र.] भगवन् ! (अनेक) जीव, (अनेक) नारकों की अपेक्षा से कितनी क्रियाओं