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[प्रज्ञापनासूत्र
की (अदत्तादानक्रिया का कथन करना चाहिए।)
१५७८.[१] अस्थि णं भंते ! जीवाणं मेहुणेणं किरिया कजति ? हंता ! अस्थि । कम्हि णं भंते ! जीवाणं मेहुणेणं किरिया कजति ? गोयमा ! रूवेसु वा रूवसहगतेसु वा दव्वेसु । [१५७८-१ प्र.] भगवन् ! क्या जीवों को मैथुन (के अध्यवसाय) से (मैथुन-) क्रिया लगती है? [उ.] हाँ, ! (गौतम !) (मैथुनक्रिया संलग्न) होती है । [प्र.] भगवन् ! किस (विषय) में जीवों के मैथुन (के अध्यवसाय) से (मैथुन-) क्रिया लगती है ? [उ.] गौतम ! रूपों अथवा रूपसहगत (स्त्री आदि) द्रव्यों (के विषय) में (यह क्रिया लगती है ।) [२] एवं णेरइयाणं णिरंतरं जाव वेमाणियाणं ।
[१५७८-२] इसी प्रकार (समुच्चय जीवों के मैथुनक्रियाविषयक आलापकों के समान नैरयिकों से लेकर निरन्तर (लगातार) वैमानिकों तक (मैथुनक्रिया के आलापक कहने चाहिए।)
१५७९.[१] अत्थि णं भंते ! जीवाणं परिग्गहेणं किरिया कजइ ? हंता ! अस्थि । कम्हि णं भंते ! जीवाणं परिग्गहेणं किरिया कजति ? गोयमा ! सव्वदव्वेसु। [१५७९-१ प्र.] भगवन् ! क्या जीवों के परिग्रह (के अध्यवसाय) से (परिग्रह-) क्रिया लगती है ? [उ.] हाँ, गौतम ! (परिग्रहक्रिया लगती) है। [प्र.] भगवन् ! किस (विषय) में जीवों के परिग्रह (के अध्यवसाय) से (परिग्रह-) क्रिया लगती है? [उ.] गौतम ! समस्त द्रव्यों (के विषय) में (यह क्रिया लगती है।) [२] एवं णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं ।
[१४७९-२] इसी तरह (समुच्चय जीवों के परिग्रह-क्रियाविषयक आलापकों के समान) नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक (परिग्रह-क्रिया-विषयक आलापक कहने चाहिए।)
१५८०. एवं कोहेणं माणेणं मायाए लोभेणं पेजेणं दोसेणं कलहेणं अब्भक्खाणेणं पेसुण्णेणं परपरिवाएणं अरतिरतीए मायामोसेणं मिच्छादसणसल्लेणं सव्वेसु जीव-णेरइयभेदेसु भाणियव्वं