________________
बाईसवाँ क्रियापद ]
[५३३
[२] एवं जाव निरंतरं वेमाणियाणं ।
[१५७५-२] इसी प्रकार (नारकों के आलाप के समान) (नारकों से लेकर) निरन्तर वैमानिकों तक का (आलाप कहना चाहिए।)
१५७६. [१] अस्थि णं भंते ! जीवाणं मुसावाएणं किरिया कजति ? हंता! अस्थि । कम्हि णं भंते ! जीवाणं मुसावाएणं किरिया कजति ? गोयमा ! सव्वदव्वेसु। [१५७६-१] भगवन् ! क्या जीवों को मृषा (के अध्यवसाय) से (मृषावाद-) क्रिया लगती है? [उ.] हाँ, गौतम ! मुषावादक्रिया संलग्न होती है। [प्र.] भगवन् ! किस विषय में मृषावाद के अध्यवसाय से मृषावाद-क्रिया लगती है ? [उ.] गौतम ! सर्वद्रव्यों के (विषय) में (मृषा० क्रिया लगती है।) [२] एवं णिरंतरं णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं ।
[१५७३-२] इसी प्रकार (पूर्वोक्त कथन के समान) नैरयिकों से लेकर लगातार वैमानिकों (तक) का (कथन करना चाहिए।)
१५७७. [१] अस्थि णं भंते ! जीवाणं अदिण्णादाणेणं किरिया कजति ? हंता अत्थि। कम्हि णं भंते ! जीवाणं अदिण्णादाणेणं किरिया कजति ? गोयमा ! गहण-धारणिज्जेसु दव्वेसु।
[१५७७-१ प्र.] भगवन् ! क्या जीवों को अदत्तादान (के अध्यवसाय) से अदत्तादान- (क्रिया) लगती है ?
[उ.] हाँ, गौतम ! (अदत्तादान-क्रिया संलग्न) होती है।
[प्र.] भगवन् ! किस (विषय) में जीवों को अदत्तादान (के अध्यवसाय) से (अदत्तादान-) क्रिया लगती हैं ?
[उ.] गौतम ! ग्रहण और धारण करने योग्य द्रव्यों (के विषय) में (यह क्रिया होती है।) [२] एवं णेरइयाणं णिरंतरं जाव वेमाणियाणं । [१५७७-२] इसी प्रकार (समुच्चय जीवों के आलापक के समान) नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक