SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४ ] [प्रज्ञापनासूत्र की अपेक्षा से कौन, किससे, अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? [८०४ उ.] गौतम ! जैसे रत्नप्रभा पृथ्वी के चरमादि का अल्पबहुत्व (सू.७७७ में) प्रतिपादित किया गया है, वह सारा उसी प्रकार कहना चाहिए। इसी प्रकार (की प्ररुपणा) आयतसंस्थान तक (समझनी चाहिए।) ८०५. परिमंडलस्स णं भंते ! संठाणस्स अणंतपएसियस्स संखेजपएसोगाढस्स अचरिमस्स य ४ दव्वट्ठयाए ३ कतरेहिंतो अप्पा वा ४ ? गोयमा ! जहा संखेजपएसियस्स संखेजपएसोगाढस्स (सु. ८०२)।णवरं संकमे अणंतगुणा। एवं जाव आयते। [८०५ प्र.] भगवन् ! अनन्तप्रदेशी एवं संख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलसंस्थान के अचरम, अनेक चरम, चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश में से द्रव्य की अपेक्षा, प्रदेशों की अपेक्षा एवं द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से कौन, किससे, अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? [८०५ उ.] गौतम ! जैसे (सू. ८०२ में) संख्यातप्रदेशावगाढ़ संख्यातप्रदेशी परिमण्डलसंस्थान के चरमादि के अल्पबहुतत्व के विषय में कहा, वैसे ही इसके विषय में कहना चाहिए। विशेष यह है कि संक्रम में अनन्तगुणे हैं। इसी प्रकार (वृत्तसंस्थान से लेकर) आयतसंस्थान तक कहना चाहिए। ८०६. परिमंडलस्स णं भंते ! संठाणस्स अणंतपएसियस्स असंखेजपएसोगाढस्स अचरिमस्स यः४? जहा रयणप्पभाए (सु. ७७७) । णवरं संकमे अणंतगुणा। एवं जाव आयते। [८०६ प्र.] भगवन् ! अनन्तप्रदेशी एवं असंख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डल संस्थान के अचरम, अनेक चरम, चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश में से द्रव्य की अपेक्षा से, प्रदेशों की अपेक्षा से तथा द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से कौन, किससे अल्प, बहुत, तुल्य और विशेषाधिक है ? [८०६ उ.] गौतम ! जैसे (सू. ७७७ में) रत्नप्रभापृथ्वी के चरम, अचरम आदि के विषय में अल्पबहुत्व कहा गया है, उसी प्रकार अनन्तप्रदेशी एवं असंख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलसंस्थान के चरम, अचरम आदि के अल्पबहुत्व के विषय में समझ लेना चाहिए। विशेषता यह है कि संकम में अनन्तगुणा है। इसी प्रकार (वृत्तसंस्थान से लेकर) यावत् आयतसंस्थान (के चरमादि के अल्पबहुत्व के विषय में समझ लेना चाहिए।) विवेचन - विशिष्ट परिमंडलादि के चरमादि के अल्पबहुत्व की प्ररुपणा - प्रस्तुत सोलह सूत्रों
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy