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________________ दसवाँ चरमपद] [३३ य चरिमाण य चरिमंतपएसाण य अचरिमंतपएसाण य दव्वट्ठयाए पएसट्टयाए दव्वट्ठपएसट्ठयाए कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा ४? गोयमा ! सव्वत्थोवे परिमंडलस्स संठाणस्स असंखेजपएसियस्स संखेजपएसोगाढस्स दव्वट्ठयाएएगे अचरिमे १ चरिमाइंसंखेजगुणाई २ अचरिमंच चरिमाणि य दो वि विसेसाहियाइं ३ पदेसट्ठयाएसव्वत्थोवा परिमंडलस्स संठाणस्स असंखेजपएसियस्स संखेजपएसोगाढस्स चरिमंतपएसा १ अचरिमंतपएसा संखेजगुणा २ चरिमंतपएसा य अचरिमंतपएसा य दो वि विसेसाहिया ३। दव्वट्ठपएसट्टयाए-सव्वत्थोवे परिमंडलस्स संठाणस्स असंखेजपएसियस्स संखेजपएसोगाढस्स दव्वट्ठयाए एगे अचरिमे १ चरिमाइं संखेजगुणाई २ अचरिमं च चरिमाणि य दो वि विसेसाहियाइं ३ चरिमंतपएसा संखेजगुणा ४ अचरिमंतपएसा संखेजगुणा ५ चरिमंतपएसा य अचरिमंतपएसा य दो वि विसेसाहिया ६। एवं जाव आयते। [८०३ प्र.] भगवन् ! असंख्यातप्रदेशी एवं संख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलसंस्थान के अचरम, अनेक चरम, चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश में से द्रव्य की अपेक्षा से, प्रदेशों की अपेक्षा से तथा द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? . __ [८०३ उ.] गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा-असंख्यातप्रदेशी एवं संख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलसंस्थान का एक अचरम सबसे थोड़ा है, (उसकी अपेक्षा) अनेक चरम संख्यातगुणे अधिक हैं, (उनसे) एक अचरम और अनेक चरम, ये दोनों विशेषाधिक हैं। प्रदेशों की अपेक्षा-असंख्यातप्रदेशी संख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलसंस्थान के चरमान्तप्रदेश, सबसे कम हैं, (उनकी अपेक्षा) अचरमान्तप्रदेश संख्यातगुणे हैं, (उससे) चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश, ये दोनों (मिलकर) विशेषाधिक हैं। द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा-असंख्यातप्रदेशी संख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलसंस्थान का एक अचरम सबसे कम है, (उसकी अपेक्षा) अनेक चरम संख्यातगुणे अधिक हैं, (उनसे) एक अचरम और बहुत चरम, ये दोनों (मिलकर) विशेषाधिक हैं, (उनकी अपेक्षा) अचरमान्तप्रदेश संख्यातगुणे हैं, (उनसे) अचरमान्तप्रदेश संख्यातगुणे हैं, (उनसे) चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश, ये दोनों (मिलकर) विशेषाधिक हैं। ८०४. परिमंडलस्स णं भंते ! संठाणस्स असंखेजपदेसियस्स असंखेजपएसोगाढस्स अचरिमस्स य चरिमाण य चरिमंतपएसाण य अचरिमंतपएसाण य दव्वट्ठयाए पएसट्ठयाए दव्वट्ठपएसट्ठयाए कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा ४। गोयमा ! जहा रपणप्पभाए अप्पाबहुयं (सु. ७७७) तहेव णिरवसेसं भाणियव्वं एवं जाव आयते। [८०४ प्र.] भगवन् ! असंख्यातप्रदेशी एवं असंख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डसंस्थान के अचरम अनेक चरम, चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश में से द्रव्य की अपेक्षा से, प्रदेशों की अपेक्षा से और द्रव्य एवं प्रदेशों
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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