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प्रज्ञापनासूत्र
[८०१ प्र.] जैसे (सू. ८०० में) अनन्तप्रदेशी संख्यातप्रदेशावगाढ़ (परिमण्डलादि संस्थानों के चरमाचरमादि के विषय में कहा, उसी प्रकार अनन्तप्रदेशी असंख्यातप्रदेशावगाढ़ (परिमण्डलादि के विषय में) यावत् आयतसंस्थान (तक कहना चाहिए।)
८०२. परिमंडलस्स णं भंते ! संठाणस्स संखेज्जपएसियस्स संखेज्जपएसोगाढस्स अचरमिस्स च चरिमाण य चरिमंतपदेसाण य अचरिमंतपदेसाण य दव्वट्टयाए पदेसट्टयाए दव्वट्टपदेसट्टयाए कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा ४ ।
गोयमा ! सव्वत्थोवे परिमंडलस्स संठाणस्स संखेज्जपदेसियस्स संखेज्जपदेसोगाढस्स दव्वट्टयाए एगे अचरिमे १ चरिमाई संखेज्जगुणाई २ अचरिमं च चरिमाणि य दो वि विसेसाहियाई ३ । पदेसट्टयाएसव्वत्थोवा परिमंडलस्स संठाणस्स संखेज्जपदेसियस्स संखेज्जपदेसोगाढस्स चरिमंतपदेसा १ अचरिमंतपसा संखेज्जगुणा २ चरिमंतपदेसा य अचरिमंतपदेसा य दो वि विसेसाहिया ३ । दव्वट्ठपदेसट्टयाए - सव्वत्थोवे परिमंडलस्स संठाणस्स संखेज्जपदेसियस्स संखेज्जपदेसोगाढस्स दव्वट्टयाए एगे अचरिमे १ चरिमाइं संखेज्जगुणाई २ अचरिमं च चरिमाणि य दो वि विसेसाहियाई ३ चरिमंतपदेसा संखेज्जगुणा ४ अचरिमंतपएसा संखेज्जगुणा ५ चरिमंतपदेसा य अचरिमंतपदेसा य दो वि विसेसाहिया ६ । एवं वट्ठ- तंस - चउरंस- आयएसु वि जोएअव्वं ।
[८०२ प्र.] भगवन् ! संख्यातप्रदेशी संख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलसंस्थान के अचरम, अनेक चरम, चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश में से द्रव्य की अपेक्षा से, प्रदेशों की अपेक्षा से और द्रव्यप्रदेश इन दोनों की अपेक्षा से कौन अल्प, बहुव, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ?
[८०२ उ.] गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा-संख्यातप्रदेशी संख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डल- संस्थान का एक अचरम सबसे अल्प है (उसकी अपेक्षा) अनेक चरम संख्यातगुणे अधिक हैं, अचरम और बहुवचनान्त चरम, ये दोनों मिलकर) विशेषाधिक हैं। प्रदेशों की अपेक्षा - संख्यातप्रदेशी संख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलसंस्थान के चरमान्तप्रदेश सबसे थोड़े हैं, (उनकी अपेक्षा) अचरमान्तप्रदेश संख्यातगुणे अधिक हैं, उनसे चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश दोनों (मिलकर) विशेषाधिक हैं । द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा-संख्यातप्रदेशीसंख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलसंस्थान का एक अचरम सबसे अल्प है, (उसकी अपेक्षा) अनेक चरम संख्यातगुणे हैं, उनसे ) एक अचरम और अनेक चरम, ये दोनों (मिलकर) विशेषाधिक हैं, (उनकी अपेक्षा) चरमान्तप्रदेश संख्यातगुणे हैं, उनसे) अचरमान्तप्रदेश संख्यातगुणे हैं, ( उनसे) चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश ये दोनों (मिलकर) विशेषाधिक हैं ।
इसी प्रकार की योजना वृत्त, व्यस्त्र, चतुरस्त्र और आयत संस्थान के (चरमादि के अल्पबहुत्व के) विषय कर लेनी चाहिए।
८०३. परिमंडलस्स णं भंते ! संठाणस्स असंखेज्जपएसियस्स संखेज्जपएसोगाढस्स अचरिमस्स