________________
दसवाँ चरमपद]
[३५
(सू.७९१ से ८०६ तक) में परिमण्डलादि संस्थानों के संख्यातप्रदेशिकादि तथा संख्यातप्रदेशावगाढ़ादि विविध रुपों का प्रतिपादन करके उनके अचरम-चरमादि के अल्पबहुत्व की प्ररुपणा की गई है। ___ संख्यातप्रदेशी आदि संस्थानों के अवगाहन की प्ररूपणा-संख्यातप्रदेशी परिमण्डल आदि संस्थान संख्यातप्रदेशों में ही अवगाढ़ होता है, असंख्यातप्रदेशों में या अनन्तप्रदेशों में अवगाढ़ नहीं होता, क्योंकि संख्यातप्रदेशी परिमंडल आदि संस्थानों के प्रदेश संख्यात ही होते हैं। असंख्यातप्रदेशी परिमण्डल आदि संस्थानों का कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात प्रदेशों में अवगाह होता है, इसमें कोई विरोध नहीं है, किन्त उसका अनन्तप्रदेशों में अवगाह होना विरुद्ध है। इसी प्रकार अनन्तप्रदेशी परिमंडलादि संस्थानों का अवगाह भी कदाचित् संख्यातप्रदेशों में और कदाचित् असंख्यातप्रदेशों में होता है, किन्तु अनन्तप्रदेशों में नहीं क्योकि अनन्तप्रदेशी परिमंडलादि संस्थान का अनन्त आकाशप्रदेशों में अवगाह नहीं हो सकता। सैद्धान्तिक दृष्टि से समग्र लोकाकाश के प्रदेश असंख्यात ही है, अनन्त नहीं और लोकाकाश के बाहर पुद्गलों की गति या स्थिति हो नहीं सकती। अतः अनन्तप्रदेशी परिमंडलादि संस्थान या तो संख्यातप्रदेशों में अवगाहन करता है या असंख्यातप्रदेशों में, अनन्तप्रदेशों में उसका अवगाह सम्भव नहीं है।
पंचविशेषणविशिष्ट परिमण्डलादि संस्थानों का चरमादि की दृष्टि से स्वरूपविचार - प्रस्तुत ५ सूत्रों (७९७ से ८०१ तक) में निनोक्त पांच विशेषणों से युक्त परिमंडलसंस्थानादि का चरमादि ६ की दृष्टि से विचार किया गया है - .
१. संख्यातप्रदेशी संख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलादि संस्थान २. असंख्यातप्रदेशी संख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलादि संस्थान ३. असंख्यातप्रदेशी असंख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलादि संस्थान ४. अनन्तप्रदेशी संख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलादि संस्थान ५. अनन्तप्रदेशी असंख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलादि संस्थान
चरमादि ६ पद वे ही हैं, जिनको लेकर रत्नप्रभापृथ्वी के चरमादि स्वरूप का विचार किया गया था और उपर्युक्त विशेषणविशिष्ट सभी परिमण्डलादि संस्थानों के चरमादिस्वरूप विषयक प्रश्र का उत्तर भी वही है, जो रत्नप्रभा के चरमादिविषयक प्रश्नों का उत्तर है। वह है- ये चरम, अचरम, अनेक चरम, अनेक अचरम चरमान्तप्रदेश या अचरमान्तप्रदेश नहीं हैं किन्तु रत्नप्रभापृथ्वी के समान इन संस्थानों की अनेक अवयवों के अविभागात्मक रुप में विवक्षा की जाए तो ये प्रत्येक एक अचरम हैं, अनेक चरमरूप हैं तथा प्रदेशों की विवक्षा की जाए तो चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश हैं।
१. प्रज्ञापनासूत्र मलय वृत्ति, पत्रांक २४४ २. (क) पण्णवणासुत्तं भा. १ (मूलपाठ) पृ. २०२-२०३
(ख) प्रज्ञापनासूत्र मलय वृत्ति, पत्रांक २४४