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________________ इक्कीसवाँ अवगाहना-संस्थान-पद] [५११ सरीरोगाहणा पण्णत्ता? गोयमा !सरीरपमाणमेत्ता विक्खंभ-बाहल्लेणं आयामेणं जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं अहे जाव अहेलोइयगामा, तिरियं जाव मणूसखेत्ते, उड्ढं जाव अच्चुओ कप्पो।। [१५५१-६ प्र.] भगवन् ! मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत आनत (कल्प के) देव के तैजसशरीर की अवगाहना कितनी बड़ी कही गई है ? [उ.] गौतम ! (इसकी तैजसशरीरावगाहना) विष्कम्भ और बाहल्य की अपेक्षा से शरीर के प्रमाण के बराबर होती है और आयाम की अपेक्षा से जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की, उत्कृष्ट-नीचे की ओर अधोलौकिकग्राम तक की, तिरछी मनुष्यक्षेत्र तक की और ऊपर अच्युतकल्प तक की (होती है ।) [७] एवं जाव आरणदेवस्स । ___ [१५५१-७] इसी प्रकार (आनतदेव की तैजसशरीरावगाहना के समान) प्राणत और आरण तक को (तैजसशरीरावगाहना समझ लेनी चाहिए ।) • [८] अच्चुयदेवस्स वि एवं चेव । णवरं उड्ढं जाव सगाई विमाणाई। [१५५१-८] अच्चुतदेव की (तैजसशरीरावगाहना) भी इन्हीं के समान होती है । विशेष इतनाकहै कि ऊपर (उत्कृष्ट तैजसशरीरावगाहना) अपने-अपने विमानों तक की होती है । [९] गेवेजगदेवस्स णं भंते ! मारणंतियसमुग्घाएणं समोहयस्स तेयासरीरस्स केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता। गोयमा! सरीरपमाणमेत्ता विक्खंभ-बाहल्लेणं; आयामेणं जहण्णेणं विजाहरसेढीओ, उक्कोसेणं जाव अहेलोइयगामा, तिरियं जाव मणूसखेत्ते, उड्ढं जाव सगाई विमाणाई। [१५५१-९ प्र.] भगवन् ! मारणान्तिक समुद्घात से समवहत ग्रैवेयकदेव के तैजसशरीर की अवगाहना कितनी कही गई है ? [उ.] गौतम ! विष्कम्भ और बाहल्य की अपेक्षा से शरीरप्रमाणमात्र होती है तथा आयाम की अपेक्षा से जघन्य विद्याघर श्रेणियों तक की और उत्कृष्ट नीचे की ओर अधोलौकिकग्राम तक की, तिरछी मनुष्यक्षेत्र तक की और ऊपर अपने विमानों तक की (होती है ।) [१०] अणुत्तरोववाइयस्स वि एवं चेव । [१५५१-१०] अनुत्तरौपपातिकदेव की तैजसशरीरावगाहना भी इस प्रकार (ग्रवेयकदेव की तैजसशरीरावगाहना के समान) समझनी चाहिए ।
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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