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[प्रज्ञापनासूत्र
[१५५१-१ प्र.] भगवन् ! मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत अ. रकुमार के तैजसशरीर की अवगाहना कितनी कही गई है?
[उ.] गौतम ! विष्कम्भ और बाहल्य की अपेक्षा से शरीरप्रमाणमात्र (शरीर के बराबर) तथा आयाम की अपेक्षा से जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट नीचे की ओर तीसरी (नरक) पृथ्वी के अधस्तनचरमान्त तक, तिरछी स्वयम्भूरमणसमुद्र की बाहरी वेदिका तक एवं ऊपर ईषत्प्राग्भारपृथ्वी तक (असुरकुमार के तैजसशरीर की अवगाहना होती है।)
[२] एवं जाव थणियकुमारतेयगसरीरस्स। __[१५५१-२] इसी प्रकार (असुरकुमार के तैजसशरीर की अवगाहना के समान) नागकुमार से लेकर स्तनितकुमार तक की (तैजसशरीरीय अवगाहना समझ लेनी चाहिए।)
[३] वाणमंतर-जोइसिया सोहम्मीसाणगा य एवं चेव।
[१५५१-३] वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क एवं सौधर्म ईशान (कल्प के देवों की तैजसशरीरीय अवगाहना भी इसी प्रकार (असुरकुमार के समान) समझनी चाहिए।
[४] सणंकुमारदेवस्स णं भंते ! मारणंतियसमुग्घाएणं समोहयस्स तेयासरीरस्स केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ?.
गोयमा ! सरीरपमाणमेत्ता विक्खंभ-बाहल्लेणं,आयामेणं जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं अहे जाव महापातालाणं दोच्चे तिभागे, तिरियं जाव सयंभुरमणसमुद्दे, उड्डे जाव अच्चुओ कप्यो।
_ [१५५१-४ प्र.] भगवन् ! मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत सनत्कुमार-देव तैजसशरीर की अवगाहना कितनी बड़ी कही गई है ?
- [उ.] गौतम ! विष्कम्भ एवं बाहल्य की अपेक्षा से शरीर-प्रमाणमात्र (होती है) और आयाम की अपेक्षा से जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की तथा उत्कृष्ट नीचे महापाताल (कलश) के द्वितीय त्रिभाग तक की, तिरछी स्वयम्भूरणसमुद्र तक की और ऊपर अच्युतकल्प तक की (इसकी तैजसशरीरावगाहना होती है।)
[५] एवं जाव सहस्सारदेवस्स ।
[१५५१-५] इसी प्रकार (सनत्कुमारदेव की तैजसशरीरीय अवगाहना के समान) (माहेन्द्रकल्प से लेकर) सहस्रारकल्प के देवों तक की (तैजसशरीरावगाहना समझ लेना चाहिए ।)
[६] आणयदेवस्स णं भंते ! मारणंतियसमुग्घाएणं समोहयस्स तेयासरीरस्स केमहालिया