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इक्कीसवाँ अवगाहना-संस्थान- पद ]
[१५४४-१] भगवन् ! नैरयिकों का तैजसशरीर किस संस्थान का कहा गया है ?
[उ.] गौतम ! जैसे (सू. १५२३ में) (इनके) वैक्रियशरीर (के संस्थान) का ( कथन किया है) ( उसी प्रकार इनके तैजसशरीर के संस्थान का कथन करना चाहिए ।)
[ २ ] पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं मणूसाण य जहा एतेसिं चेव ओरालिय त्ति (सु. १५२४
२५)
[१५४४-२] पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों और मनुष्यों के तैजसशरीर के संस्थान का कथन उसी प्रकार करना चाहिए, जिस प्रकार (सू. १५२४ - १५२५ में ) इनके औदारिकशरीरगत संस्थानों का कथन किया गया है ।
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[ ३ ] देवाणं भंते ! तेयगसरीरे किंसंठिए पण्णत्ते ?
गोयमा ! जहा (सु. १५२६) जाव अणुत्तरोववाइय त्ति ।
[१५४४-३ प्र.] भगवन् ! देवों के तैजसशरीर का संस्थान किस प्रकार का कहा गया है ?
[उ.] गौतम ! जैसे (सू. १५२६ में असुरकुमार से लेकर) यावत् अनुत्तरौपपातिक देवों के वैक्रियशरीर के संस्थान का कथन किया है, उसी प्रकार इनके तैजसशरीर के संस्थान का कथन करना चाहिए ।
विवेचन - एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक के तैजसशरीर का संस्थान - एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के तैजसशरीरों के संस्थान की चर्चा प्रस्तुत ५ सूत्रों (१५४० से १५४४) में की गई है ।
तैजसशरीर का संस्थान औदारिक- वैक्रियशरीरानुसारी क्यों ? - तैजसशरीर जीव के प्रदेशों के अनुसार होता है । अतएव जिस भव में जिस जीव के औदारिक अथवा वैक्रिय शरीर के अनुसार आत्मप्रदेशों जैसा आकार होता है, वैसा ही उन जीवों के तैजसशरीर का आकार होता है।
तैजसशरीर में प्रमाणद्वार
१५४५. जीवस्स णं भंते ! मारणंतियसमुग्धाएणं समोहस्स तेयासरीरस्स केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ?
गोयमा ! सरीरपमाणमेत्ता विक्खंभ-बाहल्लेणं; आयामेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागो, उक्कोसेणं लोगंताओ लोगंतो ।
१.
[१५४५ प्र.] भगवन् ! मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत ( समुद्घात किये हुए) जीव के तैजसशरीर की अवगाहना कितनी होती है ?
प्रज्ञापना. मलय. वृत्ति, पत्र ४२७