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[ प्रज्ञापनासूत्र
शरीर तक के जितने भेद कहे गए हैं, उतने ही भेद इनके तैजसशरीर के कहने चाहिए। पंचेन्द्रिय तैजसशरीर
नरक आदि चार भेद बताए हैं। उनमें से नारकों के वैक्रियशरीर के पर्याप्तक- अपर्याप्तक ये दो भेद कहे गए हैं, वैसे ही इनके तैजसशरीर के भी दो भेद कहने चाहिए । तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों और मनुष्यों के औदारिकशरीर के जितने भेद कहे हैं, उतने ही उनके तैजसशरीर के भेद कहने चाहिए। चारों प्रकार के देवों के (सर्वार्थसिद्ध तक के) वैक्रियशरीर के जितने भेद कहे हैं, उतने ही इनके तैजसशरीरगत भेद कहने चाहिए ।'
तैजसशरीर में संस्थानद्वार
१५४०. तेयगसरीरे णं भंते ! किंसंठिए पण्णत्ते ?
गोयमा । णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते ।
[१५४० प्र.] भगवन् ! तैजसशरीर का संस्थान किस प्रकार का कहा गया है ?
[उ.] गौतम ! (वह) नाना संस्थान वाला कहा गया है।
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१५४१. एगिंदियतेयगसरीरे णं भंते ! किंसंठिए पण्णत्ते ?
गोयमा ! णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते ।
[१५४१ प्र.] भगवन् ! एकेन्द्रियतैजसशरीर किस संस्थान का होता है ? [उ.] गौतम ! (वह) नाना प्रकार के संस्थान वाला होता है।
१५४२. पुढविक्वाइयएगिंदियतेयगसरीरे णं भंते! किंसंठिए पण्णत्ते ?
गोयमा ! मसूरचंदसंठाणसंठिए पण्णत्ते ।
[१५४२ प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक- एकेन्द्रियतैजसशरीर किस संस्थान वाला कहा गया है ? [उ.] गौतम ! (वह) मसूरचन्द्र (मसूर की दाल) के आकार का कहा गया है।
१५४३. एवं ओरायिसंठाणाणुसारेणं भाणियव्वं (सु. १४९० - ९६ ) जाव चउरिंदियाणं ति । [१५४३] इसी प्रकार ( अन्य एकेन्द्रियों से लेकर) यावत् चतुरिन्द्रियों के तैजसशरीर संस्थान का कथन (सू. १४९० से १५९६ तक में उक्त) इनके औदारिकशरीर-संस्थानों के अनुसार कहना चाहिए ।
१५४४. [ १ ] णेरइयाणं भंते ! तेयगसरीरे किसंठिए पण्णत्ते ?
गोमा ! जहा वेडव्वियसरीरे (सु. १५२३)
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(क) पण्ण्वणासुत्तं (प्रस्तावनादि) भा. २, पृ. ११८ (ख) प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, पत्र ४२७