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________________ इक्कीसवाँ अवगाहना-संस्थान-पद] [५०५ ___ [उ.] गौतम ! (वह) पाँच प्रकार का कहा गया है, यथा-पृथ्वीकायिक-तैजसंशरीर यावत् वनस्पतिकायिक-तैजसशरीर । १५३८. एवं जहा ओरालियसरीरस्स भेदो भणिया (सु. १४७७-८१). तहा तेयगस्स वि जाव चउरि दिया। __ [१५३८ प्र.] इस प्रकार जैसे औदारिकशरीर के भेद (सूत्र १५७७ से १५८१ तक में) कहे हैं, उसी प्रकार तैजसशरीर के भी (भेद) चतुरिन्द्रिय तक के (कहने चाहिए ।) १५३९. [१] पंचेंदियतेयगसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते? गोयमा ! चउबिहे पण्णत्ते । तं जहा-णेरइयतेयगसरीरे जाव देवतेयगसरीरे । [१५३९-१ प्र.] भगवन् ! पंचेंद्रियतैजसशरीर कितने प्रकार का कहा गया है ? [उ.] गौतम ! (वह) चार प्रकार का कहा गया है, यथा - नैरयिकतैजसशरीर यावत् देवतैजसशरीर। [२] णेरइयाणं दुगतो भाणियव्वो जहा वेउब्वियसरीर (सु. १५१७-२)। [१५३९-२] जैसे नारकों के वैक्रियशरीर के (सू. १५१७-२) में पर्याप्तक और अपर्याप्तक, ये दो भेद कहे गये हैं, उसी प्रकार यहाँ नारकों के तैजसशरीर के भी भेद (कहने चाहिए ।) __[३]पंचेदियतिरिक्खजोणियाणं मणूसाण य जहा ओरालियसरीरे भेदो भणियो (सु. १४८२८७) तहा भाणियव्वो। [१५३९-३] जैसे (सू. १५८२ से १५८७ तक में ) पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों और मनुष्यों के औदारिकशरीर के भेदों का कथन किया है, उसी प्रकार (यहाँ भी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों और मनुष्यों के तैजसशरीर के भेदों का) कथन करना चाहिए। [४] देवाणं जहा वेउव्वियसरीरे भेओ भणिओ (सु. १५२०) तहा (तेयगस्स वि) भाणियव्वो जाव सव्वट्ठसिद्धदेवे त्ति। __ [१५३९-४] जैसे- (चारों प्रकार के) देवों के (सू. १५२० में) वैक्रियशरीर के भेद कहे गए हैं, वैसे ही (यहाँ भी) यावत् सर्वार्थसिद्ध देवों (तक) के (तैजसशरीर के भेदों) का कथन करना चाहिए। विवेचन - तैजसशरीर के भेद-प्रभेदों का निरूपण - प्रस्तुत ४ सूत्रों (१५३६ से १५३९ तक में समस्त संसारी जीवों के तैजसशरीर के भेद-प्रभेदों का निरूपण किया गया है। फलितार्थ - तैजसशरीर एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के समस्त जीवों के अवश्यमेव होता है। इसलिए जीवों के जितने भेद हैं, उतने ही तैजसशरीर के भेद हैं। यथा एक-द्वि-त्रि-चतुरिन्द्रियगत औदारिक
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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