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[प्रज्ञापनासूत्र
[१५३४ प्र.] भगवन् ! आहारकशरीर किस संस्थान (आकार) का कहा गया है ? [उ.] गौतम ! (वह) समचतुरस्रसंस्थान वाला कहा गया है ।
विवेचन - आहारकशरीर का आकार - आहारकशरीर एक ही प्रकार का होता है और उसका संस्थान एक ही प्रकार का-'समचतुरस्र' कहा गया है । आहारकशरीर में प्रमाणद्वार
१५३५. आहारगसरीरस्स णं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? गोयमा ! जहण्णेणं देसूणा रयणी, उक्कोसेणं पडिपुण्णा रयणी । [१५३५ प्र.] भगवन् ! आहारकशरीर की अवगाहना कितनी कही गयी है ?
[उ.] गौतम ! (उसकी अवगाहना) जघन्य देशोन (कुछ कम) एक हाथ की, उत्कृष्ट पूर्ण एक हाथ को होती है ।
विवेचन - आहारकशरीर की अवगाहना - प्रस्तुत सूत्र में आहारकशरीर की ऊँचाई का प्रमाण (अवगाहना) बताया गया है ।
आहारकशरीर का प्रमाण - उसकी कम से कम अवगाहना, कुछ कम एक रनि प्रमाण (एक हाथ) बतायी गयी है । प्रारम्भ समय में उसकी इतनी ही अवगाहना होती है, उसका कारण तथाविध प्रयत्न है । आहारकशरीर की उत्कृष्ट अवगाहना पूर्ण रनि प्रमाण बताई गई है। तैजसशरीर में विधिद्वार
१५३६. तेश्गसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते । तं जहा-एगिदियतेयगसरीरे जाव पंचेदियतेयगसरीरे । [१५३६ प्र.] भगवन् ! तैजसशरीर कितने प्रकार का कहा गया है ?
[उ.] गौतम ! (वह) पाँच प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार - एकेन्द्रियतैजसशरीर यावत् पंचेन्द्रियतैजसशरीर ।
१५३७. एगिंदियतेयगसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते । तं जहा-पुढविक्काइया जाव वणस्सइकाइयएगिंदियतेयगसरीरे। [१५३७ प्र.] भगवन् ! एकेन्द्रियतैजसशरीर कितने प्रकार का कहा गया है ?
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प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, पत्र ४२५-४२६