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________________ इक्कीसवाँ अवगाहना-संस्थान-पद] [४९३ अंगुलस्सअसंखेजइभागं उक्कोसेणं दो रयणीओ । [१५३२-६ प्र.] भंते ! ग्रैवेयक-कल्पातीत-वैमानिकदेव-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर की अवगाहना कितनी कही गई है ? __[उ.] गौतम ! ग्रैवेयकदेवों की एक मात्र भवधारणीया शरीरावगाहना होती है । वह जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग-(प्रमाण) और उत्कृष्टतः दो हाथ की है । . [७] एवं अणुत्तरोववाइयदेवाण वि । णवरं एक्का रयणी । [१५३२-७] इसी प्रकार अनुत्तरौपपातिकदेवों की भी (भवधारणीया-शरीरावगाहना जघन्यतः इतनी ही समझनी चाहिए) विशेष यह है कि (इनकी) उत्कृष्ट (शरीरावगाहना) एक हाथ की होती है। विवेचन - वैक्रियशरीरी जीवों की शरीरावगाहना - प्रस्तुत छह सूत्रों (सू. १५२१ से १५२६ तक) में वैक्रियशरीर के प्रमाणद्वार के प्रसंग में वैक्रियशरीरी जीवों के भवधारणीय और उत्तरवैक्रियशरीरों को लक्ष्य में रख कर उनको जघन्य, उत्कृष्ट शरीरावगाहना की प्ररूपणा की गई है। ___विविध वैक्रियशरीरी जीवों की शरीरावगाहना को सुगमता से समझने के लिए तालिका दी जा रही हैक्रम वैक्रियशरीर के प्रकार भवधारणीय-शरीरावगाहना ज. उ. उत्तरवैक्रियाशरीरावगा हना ज. उ. १. औधिक वैक्रियशरीर जघन्य-अंगुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्ट-कुछ अधिक एक लाख योजन २ वायुकायिक ए. वै. जघन्य-अंगुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्ट-अंगुल के असंशरीर ख्यातवें भाग । ३. समुच्चय नारकों के वै. भव.जघन्य-अंगुल के असंख्यातवें भाग, ज.-अंगुल के संख्यातवें शरीर उ.५०० धनु. भाग उ. १००० योजन । ४. रत्नप्रभा के ना. के वै. भव.जघन्य-अंगुल के असंख्यातवें भाग, ज.-अंगुल के संख्यातवें शरीर उ.७ ध. ३ हाथ ६ अं. भाग उ. १५धनु. २ ॥ हाथ ५. शर्कराप्रभा के ना. के जघन्य-अंगुल के असंख्यातवें भाग, उ ज.-अंगुल के संख्यातवें वै. शरीर १५ ध. २॥ हाथ भाग उ. ३१ धनु. १ हाथ ६. वालुकाप्रभा के ना. के जघन्य-अंगुल के असंख्यातवें भाग, उ. ज.-अंगुल के संख्यातवें
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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