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________________ ४९२ ] [प्रज्ञापनासूत्र उत्तरवैक्रिया । उनमें से भवधारणीया-(शरीरावगाहना जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग (प्रमाण) है (और) उत्कृष्टतः सात हाथ की है । (उनकी) उत्तरवैक्रिया-अवगाहना जघन्यत: अंगुल के संख्यातवें भाग(प्रमाण) है (और) उत्कृष्टतः एक लाख योजन की है । [२] एवं जाव थणियकुमाराणं । - [१५३२-२] इसी प्रकार-(असुरकुमारों की शरीरावगाहना के समान)-(नागकुमार देवों से लेकर) स्तनितकुमार देवों (तक) की (भवधारणीया और उत्तरवैक्रिया शरीरावगाहना जघन्यतः और उत्कृष्टतः) समझ लेनी चाहिए। [३] एवं ओहियाणं वाणमंराणं । [१५३२-३] इसी प्रकार (पूर्ववत्) औधिक (समुच्चय) वाणव्यन्तरदेवों की (उभयरूपा जघन्य, उत्कृष्ट शरीरावगाहना समझ लेनी चाहिए ।) [४] एवं जोइसियाण वि। [१५३२-४] इसी तरह ज्योतिष्कदेवों की (उभयरूपा जघन्य, उत्कृष्ट शरीरावगाहना) भी (जान लेनी चाहिए ।) सोहम्मीसाणगदेवाणं एवं चेव उत्तरवेउव्विया जाव अच्चुओ कप्पो । णवरं सणंकुमारे भवधारणिज्जा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं उक्कोसेणं छ रयणीओ, एवं माहिंदे वि, बंभलोयलंतगेसु पंच रयणीओ, महासुक्क-सहस्सारेसु चत्तारि रयणीओ, आणय-पाणय-आरणअच्चुएसु तिण्णि रयणीओ। [१५३२-५] सौधर्म और ईशान कल्प के देवों का यावत् अच्युतकल्प के देवों तक की भवधारणीयाशरीरावगाहना भी इन्हीं के समान समझनी चाहिए, उत्तरवैक्रिया-शरीरावगाहना भी पूर्ववत् समझनी चाहिए । विशेषता यह है कि सनत्कुमारकल्प के देवों की भवधारणीया-शरीरावगाहना जधन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग-(प्रमाण) है और उत्कृष्ट छह हाथ की है, इतनी ही माहेन्द्रकल्प के देवों की शरीरावगाहना होती है । ब्रह्मलोक और लान्तक कल्प के देवों की शरीरावगाहना पांच हाथ की (तथा) महाशुक्र और सहस्रार कल्प के देवों की शरीरावगाहना चार हाथ की, (एवं) आनत, प्राणत, आरण और अच्युतकल्प के देवों की शरीरावगाहना तीन हाथ की होती है । [६]गेवेजगकप्पातोतवेमाणियदेवपंचेंदियवेउव्वियसरीरस्सणं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? गोयमा ! गेवेजगदेवाणं एगा भवधारणिजा सरीरोगाहणा पण्णत्ता, सा जहण्णेणं
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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