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इक्कीसवाँ अवगाहना-संस्थान-पद]
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[८] अहेसत्तमाए भवधारणिज्जा पंच धणुसयाई, उत्तरवेउव्विया धणुसहस्सं । एयं उक्कोसेणं।
[१५२९-८] अध:सप्तम (पृथ्वी के नारकों) की भवधारणीया (अवगाहना) पांच सौ धनुष की है (और) उत्तरवैक्रिया (अवगाहना) एक हजार धनुष की है । यह (समस्त नरकपृथ्वियों के नारकों के भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय शरीर की) उत्कृष्ट (अवगाहना कही गई) है ।
[९] जहण्णेणं भवधारणिजा अंगुलस्स असंखेजइभाग, उत्तरवेउब्विया अंगुलस्स संखेजइभागं
[१५२९-९] (इन सबकी) जघन्यतः भवधारणीया (अवगाहना) अंगुल के असंख्यातवें भाग है (और) उत्तरवैक्रिया (अवगाहना) अंगुल के संख्यातवें भाग है ।
१५३०.तिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरस्स णं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहण पण्णत्ता? गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स संखेजइभाग, उक्कोसेणं जोयणसयपुहत्तं । [१५३० प्र.] भगवन् ! तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर की अवगाहना कितनी कही गई है? [उ.] गौतम ! जघन्यतः अंगुल के संख्यातवें भाग (और) उत्कृष्टतः शतयोजनपृथक्त्व की होती है । . १५३१. मणूसपंचेदियवेउब्वियसरीरस्स णं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स संखेजइभागं, उक्कोसेणं सातिरेगं जोयणसयसहस्सं । [१५३१ प्र.] भगवन् ! मनुष्य-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर की अवगाहना कितनी है ?
[उ.] गौतम ! (वह) जघन्यतः अंगुल के संख्यातवें भाग (और) उत्कृष्टतः कुछ अधिक एक लाख योजन की है।
१५३२ [१] असुरकुमारभवणवासिदेवपंचेंदियवेउव्वियसरीरस्स णं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता?
गोयमा ! असुरकुमाराणं देवाणं दुविहा सरीरोगाहण पण्णत्ता । तं जहा-भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य ।
तत्थ णं जा सा भवधारणिज्जा सा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेणं सत्तरयणीओ । तत्थ णं जा सा उत्तरवेउव्विया सा जहण्णेणं अंगुलस्स संखेजइभागं, उक्कोसेणं जोयणसयसहस्सं ।
___ [१५३२-१ प्र.] भगवन् ! असुरकुमार-भवनवासी देव-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर की अवगाहना कितनी कही है ?
[उ.] गौतम ! असुरकुमार की दो प्रकार की शरीरावगाहना कही गई है, यथा-भवधारणीया और