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________________ ४८६ ] [प्रज्ञापनासूत्र है, वह भी हुंडकसंस्थान वाला होता है । [२] रयणप्पभापुढविणेरड्यपंचेंदियवेउव्वियसरीरे णं भंते ! किंसंठाणसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! रयणप्पभापुढविणेरइयाणं दुविहे सरीरे पण्णत्ते । तं जहा-भवधारणिजे य उत्तरवेउव्विए य । तत्थ णं जे से भवधारणिजे से वि हुंडे, जे वि उत्तरवेउव्विए से वि हुंडे । एवं जाव अहेसत्तमापुढविणेरइयवेउव्वियसरीरे । [१५२३-२ प्र.] भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी के नारक-पंचेन्द्रियों का वैक्रियशरीर किस संस्थान का कहा गया है ? [उ.] गौतम ! रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक-पंचेन्द्रियों का (वैक्रिय) शरीर दो प्रकार का कहा गया हैभवधारणीय और उत्तरवैक्रिय । उनमें से जो भवधारणीय-वैक्रियशरीर है, वह हुंडकसंस्थान वाला है और उत्तरवैक्रिय भी हुंडक-संस्थान वाला होता है । इसी प्रकार (शर्कराप्रभापृथ्वी से लेकर) अधःसप्तमपृथ्वी के नारकों (तक के ये दोनों प्रकार के वैक्रियशरीर हुंडकसंस्थान वाले होते हैं ।) १५२४.[१] तिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउब्वियसरीरे णं भंते ! किंसंठाणसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते । [१५२४-१ प्र.] भगवन् ! तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रियों का वैक्रियशरीर किस संस्थान का कहा गया है? [उ.] गौतम ! (वह) अनेक संस्थानों वाला कहा गया है । [२] एवं जलयर-थलयर-खहयराण वि । थलयराण चउप्पय-परिसप्पाण वि । परिसप्पाण उरपरिसप्प-भुयपरिसप्पाण वि । ___ [१५२४-२] इसी प्रकार (समुच्चय तिर्यञ्च-पंचेन्द्रियों की तरह,) जलचर, थलचर और खेचरों(के वैक्रियशरीरों) का संस्थान भी (नाना प्रकार का कहा गया है।) तथा स्थलचरों में चतुष्पद और परिसों का और परिसों में उर:परिसर्प और भुजपरिसॉ के (वैक्रियशरीर) का (संस्थान भी नाना प्रकार का समझना चाहिए ।) १५२५. एवं मणूसपंचेंदियवेउव्विसरीरे वि । [१५२५] इसी (तिर्यञ्च-पंचेन्द्रियों की) तरह मनुष्य-पंचेन्द्रियों का (वैक्रियशरीर) भी (नाना संस्थानों वाला कहा गया है ।) १५२६.[१] असुरकुमारभवणवासिदेवपंचेंदियवेउब्वियसरीरे णं भंते ! किंसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! असुरकुमाराणं देवाणं दुविहे सरीरे पण्णत्ते । तं जहा-भवधारणिजे य उत्तरवेउव्विए
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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