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________________ इक्कीसवाँ अवगाहना-संस्थान पद ] [ ४८७ य । तत्थ णं जे से भवधारणिज्जे से णं समचउरंससंठाणसंठिए पण्णत्ते । तत्थ णं जे से उत्तरवेउव्विए से णं णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते । [१५२६-१ प्र.] भगवन् ! असुरकुमार - भवनवासी- देव-पंचेन्द्रियों का वैक्रियशरीर किस संस्थान का कहा गया है ? [उ.] गौतम ! असुरकुमार देवों का (वैक्रिय) शरीर दो प्रकार का कहा गया है- भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय । उनमें से जो भवधारणीयशरीर है, वह समचतुरस्त्र संस्थान वाला होता है, तथा जो उत्तरवैक्रियशरीर है, वह अनेक प्रकार के संस्थान वाला होता है । [ २ ] एवं जाव थणियकुमारदेवपंचेंदियवेडव्वियसरीरे । [१५२६-२] इसी प्रकार (असुरकुमार देवों की भांति) नागकुमार से लेकर स्तनितकुमार पर्यन्त के भी वैक्रियशरीरों का संस्थान समझ लेना चाहिए । [ ३ ] एवं वाणमंतराण वि । णवरं ओहिया वाणमंतरा पुच्छिज्जंति । [१५२६-३] इसी प्रकार वाणवयन्तरदेवों के वैक्रियशरीर का संस्थान भी असुरकुमारादि की भांति भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय की अपेक्षा से क्रमशः समचतुरस्र तथा नाना संस्थान वाला कहना चाहिए । विशेषता यह है कि यहाँ प्रश्न ( इनके भेद - प्रभेदों के विषय में न कर) औघिक - (समुच्चय) वाणव्यन्तरदेवों (के वैक्रियशरीर के संस्थान के सम्बन्ध में करना चाहिए ।) [ ४ ] एवं जोइसियाण वि ओहियाणं । [१५२६-४] इसी प्रकार ( वाणव्यन्तरों की तरह) औघिक (समुच्चय) ज्योतिष्कदेवों के वैक्रियशरीर (भवधारणीय और उत्तरवैद्रिय) के संस्थान के सम्बन्ध में समझना चाहिए । [ ५ ] एवं सोहम्म जाव अच्चुयदेवसरीरे । [१५२६-५] इसी प्रकार सौधर्म से लेकर अच्युत कल्प के ( कल्पोपपन्न वैमानिकों के भवधारणीय और उत्तर वैक्रियशरीर के संस्थानों का कथन करना चाहिए ।) [ ६ ] गेवेज्जगकप्पातीयवेमाणियदेवपंचेंदियवेउव्वियसरीरे णं भंतें ! किसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! गेवेज्जगदेवाणं एगे भवधारणिजे सरीरए, से णं समचउरंससंठाणसंठिए पण्णत्ते । [१५२६-६ प्र.] भगवन् ! ग्रैवेयककल्पातीत वैमानिकदेव-पंचेन्द्रियों का वैक्रियशरीर किस संस्थान का कहा गया है ? [उ.] गौतम ! ग्रैवेयकदेवों के एकमात्र भवधारणीय- (वैक्रिय) शरीर ही होता है और वह
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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