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________________ [ ४८५ इक्कीसवाँ अवगाहना - संस्थान- पद ] वेज्जगा णवविहा- ग्रैवेयकदेव नौ प्रकार के हैं - ( -१ से ३ उपरितनत्रिक के ४ से ६ मध्यमत्रिक के और ७ से ९ अधस्तनत्रिक के 1) अणुत्तरोववाइया पंचविहा- अनुत्तरौपपातिक देव ५ प्रकार के हैं - (१) विजय, (२) वैजयन्त, (३) जयन्त, (४) अपराजित और (५) सर्वार्थसिद्ध विमानवासी । कप्पोवगा बारसविहा- कल्पोपपन्न वैमानिक देव बारह प्रकार के है - सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण, और अच्युत देवलोकों के वैक्रियशरीर में संस्थान द्वार १५२१. वेडव्वियसरीरे णं भंते ! किंसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते । [१५२१ प्र.] भगवन् ! वैक्रियशरीर किस संस्थान वाला कहा गया है ? [उ.] गौतम ! (वह) नाना संस्थान वाला कहा गया है । १५२२. वाउक्काइयएगिंदियवेडव्वियसरीरे णं भंते! किंसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! पडागासंठाणसंठिए पण्णत्ते । [१५२२ प्र.] भगवन् ! वायुकायिक- एकेन्द्रियों का वैक्रियशरीर किस प्रकार के संस्थान वाला कहा गया है ? [उ.] गौतम (वह) पताका के आकार का कहा गया है । १५२३. [ १ ] णेरइयपेंचेंदियवेडव्वियसरीरे णं भंते ! किंसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! णेरइयपंचेंदियवेडव्वियसरीरे दुविहे पण्णत्ते । तं जहा भवधारणिज्जे य उत्तरवेडव्विए य । तत्य णं जे से भवधारणिज्जे से हुंडसंठाणसंठिए पण्णत्ते । तत्थ णं जे से उत्तरवेउव्विए से वि हुंडसंठाणसंठिए पण्णत्ते । १. [१५२३-१ प्र.] भगवन् ! नैरयिक-पंचेन्द्रियों का वैक्रियशरीर किस संस्थान का कहा गया है ? [उ.] गौतत ! नैरयिक-पंचेन्द्रिय-वैक्रियशरीर दो प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार - भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय । उनमें से जो भवधारणीय- वैक्रियशरीर है, उसका संस्थान हुंडक है तथा जो उत्तरवैक्रियशरीर (क) प्रज्ञापना - प्रमेयबोधिनीटीका, भा. ४, पृ. ३८९ - ३९० (ख) तत्त्वार्थसूत्र अ. ४, सू. ११, १२, १३, २०
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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