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इक्कीसवाँ अवगाहना - संस्थान- पद ]
वेज्जगा णवविहा- ग्रैवेयकदेव नौ प्रकार के हैं - ( -१ से ३ उपरितनत्रिक के ४ से ६ मध्यमत्रिक के और ७ से ९ अधस्तनत्रिक के 1)
अणुत्तरोववाइया पंचविहा- अनुत्तरौपपातिक देव ५ प्रकार के हैं - (१) विजय, (२) वैजयन्त, (३) जयन्त, (४) अपराजित और (५) सर्वार्थसिद्ध विमानवासी ।
कप्पोवगा बारसविहा- कल्पोपपन्न वैमानिक देव बारह प्रकार के है - सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण, और अच्युत देवलोकों के
वैक्रियशरीर में संस्थान द्वार
१५२१. वेडव्वियसरीरे णं भंते ! किंसंठिए पण्णत्ते ?
गोयमा ! णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते ।
[१५२१ प्र.] भगवन् ! वैक्रियशरीर किस संस्थान वाला कहा गया है ?
[उ.] गौतम ! (वह) नाना संस्थान वाला कहा गया है ।
१५२२. वाउक्काइयएगिंदियवेडव्वियसरीरे णं भंते! किंसंठिए पण्णत्ते ?
गोयमा ! पडागासंठाणसंठिए पण्णत्ते ।
[१५२२ प्र.] भगवन् ! वायुकायिक- एकेन्द्रियों का वैक्रियशरीर किस प्रकार के संस्थान वाला कहा गया है ?
[उ.] गौतम (वह) पताका के आकार का कहा गया है ।
१५२३. [ १ ] णेरइयपेंचेंदियवेडव्वियसरीरे णं भंते ! किंसंठिए पण्णत्ते ?
गोयमा ! णेरइयपंचेंदियवेडव्वियसरीरे दुविहे पण्णत्ते । तं जहा भवधारणिज्जे य उत्तरवेडव्विए य । तत्य णं जे से भवधारणिज्जे से हुंडसंठाणसंठिए पण्णत्ते । तत्थ णं जे से उत्तरवेउव्विए से वि हुंडसंठाणसंठिए पण्णत्ते ।
१.
[१५२३-१ प्र.] भगवन् ! नैरयिक-पंचेन्द्रियों का वैक्रियशरीर किस संस्थान का कहा गया है ?
[उ.] गौतत ! नैरयिक-पंचेन्द्रिय-वैक्रियशरीर दो प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार - भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय । उनमें से जो भवधारणीय- वैक्रियशरीर है, उसका संस्थान हुंडक है तथा जो उत्तरवैक्रियशरीर
(क) प्रज्ञापना - प्रमेयबोधिनीटीका, भा. ४, पृ. ३८९ - ३९०
(ख) तत्त्वार्थसूत्र अ. ४, सू. ११, १२, १३, २०