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________________ [ ४७१ इक्कीसवाँ अवगाहना-संस्थान - पद ] अवगाहना) चार गव्यूति (गाउ) की है । १५०९. पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं उक्कोसेणं जोयणसहस्सं ३, एवं सम्मुच्छिमाणं ३, गब्भवक्कंतियाण वि३ । एवं चेव णवओ भेदो भाणियव्वो । [१५०९] पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों के (१) औधिक औदारिकशरीर की, उनके (२) पर्याप्तकों के औदारिकशरीर को तथा उनके (३) अपर्याप्तकों के औदारिकशरीर (की उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजन की है ।) तथा सम्मूच्छिम (पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों के औधिक और पर्याप्तक) औदारिकशरीर की उत्कृष्ट अवगाहना इसी प्रकार (एक हजार योजन) की ( समझनी चाहिए किन्तु सम्मूच्छिम अपर्याप्तक- तिर्यञ्च-पंचेन्द्रिय के औदारिकशरीर की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवें भाग की होती है ।) गर्भजपंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों तथा उनके पर्याप्तकों के औदारिकशरीर की उत्कृष्ट अवगाहना भी इसी प्रकार समझती चाहिए, किन्तु इनके अपर्याप्तकों के औदारिकशरीर की पूर्ववत् अवगाहना होती है । इस प्रकार पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों की औदारिकशरीरावगाहना सम्बन्धी कुल ९ भेद (आलापक) होते हैं । १५१०. एवं जलयराण वि जोयणसहस्सं, णवओ भेदो । [१५१०] इसी प्रकार औघिक और पर्याप्तक जलचरों के औदारिकशरीर की उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजन की (पं० ति० की औ० - शरीरावगाहना के समान) होती है । ( अपर्याप्त जलचरों की औ० - शरीरावगाहना जघन्य और उत्कृष्ट पूर्ववत् जाननी चाहिए ।) इसी प्रकार पूर्ववत् इसकी औदारिकशरीरावगाहना के ९ भेद (विकल्प) होते हैं । १५११. [ १ ] थलयराण वि णवओ उक्कोसेणं भेदो उक्कोसेणं छग्गाउयाई, पज्जत्ताण वि एवं चेव ३ । सम्मुच्छिमाणं पज्जत्ताण य उक्कोसेणं गाउयपुहत्तं । गब्भवक्कंतियाणं उक्कोसेणं छग्गाउयाई पज्जत्ताण य २ । ओहियचउप्पयपज्जत्तय-गब्भवक्कतियपज्जत्तयाण य उक्कोसेणं छग्गाउयाइं । सम्मुच्छिमाणं पज्जत्ताण य गाउयपुहत्तं उक्कोसेणं । [१५११-१] स्थलचर-पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों की औदारिकशरीरावगाहना-सम्बन्धी पूर्ववत् ९ विकल्प होते हैं । (समुच्चय) स्थलचर पं० ति० की औदारिकशरीरावगाहना उत्कृष्टत: छह गव्यूति की होती है। सम्मूच्छिम स्थलचर पं० तिर्यञ्चों के एवं उनके पर्याप्तकों के औदारिकशरीर की उत्कृष्ट अवगाहना गव्यूतिपृथक्त्व (दो गाऊ से नौ गाऊ तक) की होती है । उनके अपर्याप्तकों की जघन्य और उत्कृष्ट शरीरावगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग की होती है । गर्भज - तिर्यञ्च - पंचेन्द्रियों के औदारिकशरीर की अवगाहना उत्कृष्ट छह गव्यूति की और (उनके) पर्याप्तकों (के औदारिकशरीर) की (उत्कृष्ट अवगाहना) भी ( इतनी ही होती है।) औघिक चतुष्पदों के, इनके पर्याप्तकों के तथा गर्भज-चतुष्पदों के तथा इनके पर्याप्तकों के औदारिकशरीर की अवगाहना उत्कृष्टतः छह गव्यूति की होती है । (इनके अपर्याप्तकों की अवगाहना पूर्ववत् होती है ।) सम्मूच्छिम चतुष्पद (स्थलचर-पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों) के तथा (उनके) पर्याप्तकों (के औदारिकशरीर) की
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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