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[प्रज्ञापनासूत्र
(अवगाहना) उत्कृष्ट रूप से गब्यूतिपृथक्त्व की (होती है।) ।
[२] एवं उरपरिसप्पाण वि ओहिय-गब्भवक्वंतियपजत्तयाणं जोयणसहस्सं । सम्मुच्छिमाणं जोयणपुहत्तं । ___ [१५११-२] इसी प्रकार उरः परिसर्प-(स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यचों के) औधिक, गर्भज तथा (उनके) पर्याप्तकों (के औदारिकशरीर) की (उत्कृष्ट अवगाहना) एक हजार योजन की होती है। सम्मूछिम(उर:परिसर्प स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों के तथा) उनके पर्याप्तकों (के औदारिकशरीर) की (उत्कृष्ट अवगाहना) योजनपृथक्त्व की (होती है ।) इनके अपर्याप्तकों की पूर्ववत् होती है ।
[३] भुजपरिसप्पाणं ओहियगब्भवक्कंतियाण य उक्कोसेणं गाउयपुहत्तं । सम्मुच्छिमाणं धणुपुहत्तं ।
[१५११-३] भुजपरिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों के औधिक, गर्भज तथा उनके पर्याप्तंकों के औदारिकशरीर की अवगाहना उत्कृष्टत: गव्यूति-पृथक्त्व की होती है । सम्मूछिम-(भुजपरिसर्प-स्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यचञ्चों के तथा उनके पर्याप्तकों के औदारिकशरीर) की उत्कृष्ट अवगाहना धनुषपृथक्त्व की होती है । (इनके अपर्याप्तकों के औदारिकशरीर की अवगाहना पूर्ववत् समझें ।) .
१५१२. खहयराणं ओहिय-गब्भवक्कंतियाणं सम्मच्छिमाण य तिण्ह वि उक्कोसेणं धणुपुहत्तं। इमाओ संगहणिगाहाओ
जोयणसहस्स छग्गाउयाई तत्तो य जोयणसहस्सं । गाउयपुहत्त भुजए धणूपुहत्तं च पक्खीसु ॥२१५॥ जोयणसहस्स गाउयपुहत्त तत्तो य जोयणपुहत्तं ।
दोण्हं तु धणुपुहत्तं सम्मच्छिमे होति उच्चत्तं ॥२१६॥ _[१५१२] खेचर-(पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों के) औधिकों, गर्भजों एवं सम्मच्छिमों, इन तीनों के औदारिकशरीरों की उत्कृष्ट अवगाहना धनुषपृथक्त्व की होती है ।
[गाथार्थ -(गर्भज जलचरों की उत्कृष्ट अवगाहना) एक हजार योजन की, चतुष्पद-स्थलचरों की उत्कृष्ट अवगाहना छह गव्यूति की, तत्पश्चात् उरः परिसर्प-स्थलचरों की अवगाहना एक हजार योजन की (होती है ।) भुजपरिसर्प-स्थलचरों की गव्यूतिपृथक्त्व की और खेचर पक्षियों की धनुषपृथक्त्व की
औदारिकशरीरावगाहना होती है । ॥२१५ ॥ . सम्मूछिम (स्थलचरों) की औदारिकशरीरावगाहना उत्कृष्टतः एक हजार योजन की, चतुष्पदस्थलचरों की अवगाहना गव्यूतिपृथक्त्व की उरः परिसों की योजनपृथक्त्व की, भुजपरिसों की तथा