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________________ ४७२ ] [प्रज्ञापनासूत्र (अवगाहना) उत्कृष्ट रूप से गब्यूतिपृथक्त्व की (होती है।) । [२] एवं उरपरिसप्पाण वि ओहिय-गब्भवक्वंतियपजत्तयाणं जोयणसहस्सं । सम्मुच्छिमाणं जोयणपुहत्तं । ___ [१५११-२] इसी प्रकार उरः परिसर्प-(स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यचों के) औधिक, गर्भज तथा (उनके) पर्याप्तकों (के औदारिकशरीर) की (उत्कृष्ट अवगाहना) एक हजार योजन की होती है। सम्मूछिम(उर:परिसर्प स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों के तथा) उनके पर्याप्तकों (के औदारिकशरीर) की (उत्कृष्ट अवगाहना) योजनपृथक्त्व की (होती है ।) इनके अपर्याप्तकों की पूर्ववत् होती है । [३] भुजपरिसप्पाणं ओहियगब्भवक्कंतियाण य उक्कोसेणं गाउयपुहत्तं । सम्मुच्छिमाणं धणुपुहत्तं । [१५११-३] भुजपरिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों के औधिक, गर्भज तथा उनके पर्याप्तंकों के औदारिकशरीर की अवगाहना उत्कृष्टत: गव्यूति-पृथक्त्व की होती है । सम्मूछिम-(भुजपरिसर्प-स्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यचञ्चों के तथा उनके पर्याप्तकों के औदारिकशरीर) की उत्कृष्ट अवगाहना धनुषपृथक्त्व की होती है । (इनके अपर्याप्तकों के औदारिकशरीर की अवगाहना पूर्ववत् समझें ।) . १५१२. खहयराणं ओहिय-गब्भवक्कंतियाणं सम्मच्छिमाण य तिण्ह वि उक्कोसेणं धणुपुहत्तं। इमाओ संगहणिगाहाओ जोयणसहस्स छग्गाउयाई तत्तो य जोयणसहस्सं । गाउयपुहत्त भुजए धणूपुहत्तं च पक्खीसु ॥२१५॥ जोयणसहस्स गाउयपुहत्त तत्तो य जोयणपुहत्तं । दोण्हं तु धणुपुहत्तं सम्मच्छिमे होति उच्चत्तं ॥२१६॥ _[१५१२] खेचर-(पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों के) औधिकों, गर्भजों एवं सम्मच्छिमों, इन तीनों के औदारिकशरीरों की उत्कृष्ट अवगाहना धनुषपृथक्त्व की होती है । [गाथार्थ -(गर्भज जलचरों की उत्कृष्ट अवगाहना) एक हजार योजन की, चतुष्पद-स्थलचरों की उत्कृष्ट अवगाहना छह गव्यूति की, तत्पश्चात् उरः परिसर्प-स्थलचरों की अवगाहना एक हजार योजन की (होती है ।) भुजपरिसर्प-स्थलचरों की गव्यूतिपृथक्त्व की और खेचर पक्षियों की धनुषपृथक्त्व की औदारिकशरीरावगाहना होती है । ॥२१५ ॥ . सम्मूछिम (स्थलचरों) की औदारिकशरीरावगाहना उत्कृष्टतः एक हजार योजन की, चतुष्पदस्थलचरों की अवगाहना गव्यूतिपृथक्त्व की उरः परिसों की योजनपृथक्त्व की, भुजपरिसों की तथा
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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