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________________ ४५८ ] [प्रज्ञापनासूत्र का कहा गया है ? - [उ.] गौतम ! (वह) दो प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार - सम्मूछिम-चतुष्पद-स्थलचरतिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर और गर्भज-चतुष्पद-स्थलचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रियऔदारिकशरीर । __[३] सम्मुच्छिमचउप्पयथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे . पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते । तं जहा - पजत्तसम्मुच्छिमचउप्पयथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य अपजत्तसम्मुच्छिमचउप्पयथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य। [१४८५-३ प्र.] भगवन् ! सम्मूछिम-चतुष्पद-स्थलचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर कितने प्रकार का कहा गया है ? [उ.] गौतम ! (वह) दो प्रकार का कहा गया है, जैसे-पर्याप्तक-सम्मूछिम-चतुष्पद-स्थलचरतिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर और अपर्याप्तक-सम्मूछिम-चतुष्पद-स्थलचर-तिर्यञ्चयोनिकपंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर । [४] एवं गब्भवक्कंतिए वि। .. [१४८५-४] इसी प्रकार गर्भज (-चतुष्पद-स्थलचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर) के भी (पर्याप्तक और अपर्याप्तक, ये दो प्रकार समझ लेने चाहिए ।) [५] परिसप्पथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरेणं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते । तं जहा - उरपरिसप्पथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य भुयपरिसप्पथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य । ... [१४८५-५ प्र.] भगवन् ! परिसर्प-स्थलचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर कितने प्रकार का कहा गया है ? . [उ.] गौतम ! (वह) दो प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार - उर:परिसर्प-स्थलचर-तिर्यञ्चयोनिकपंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर और भुजपरिसर्प-स्थलचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर । [६] उरपरिसप्पथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरेणं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते । तं जहा - सम्मुच्छिमउरपरिसप्पथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य गब्भवक्कंतियउरपरिसप्पथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य ।
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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