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________________ इक्कीसवाँ अवगाहना-संस्थान- पद ] [ ४५९ [१४८५-६ प्र.] भगवन् ! उरः परिसर्प-स्थलचर - तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर कितने प्रकार का कहा गया है ? [3] गौतम ! ( वह) दो प्रकार का कहा गया है, जैसे- सम्मूच्छिम - उरः परिसर्प- स्थलचरतिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर और गर्भज - उर : परिसर्प-स्थलचर - तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रियऔदारिकशरीर । [७] सम्मुच्छिमे दुविहे पण्णत्ते । तं जहा - अपज्जत्तसम्मुच्छिमउरपरिसप्पथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य पज्जत्तसम्मुच्छिमउरपरिसप्पथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य । [१४८५-७] सम्मूर्च्छिम ( - उरः परिसर्प-स्थलचर - तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय - औदारिकशरीर) दो प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार - अपर्याप्तक- सम्मूच्छिम - उर : परिसर्प-स्थलचर - तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रियऔदारिकशरीर और पर्याप्तक- सम्मूर्चिछम-उरः परिसर्प-स्थलचर - तिर्यञ्चयोनिक - पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर । [ ८ ] एवं गब्भवक्कंतियउरपरिसप्पचउक्कओ भेदो । [ १४८५-८] इसी प्रकार गर्भज - उर: परिसर्प- (स्थलचर - तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर) के भी (पर्याप्त और अपर्याप्त ये दो प्रकार मिला कर सम्मूच्छिम और गर्भज दोनों के कुल ) चार भेद समझ लेने चाहिए । [ ८ ] एवं भुयपरिसप्पा वि सम्मुच्छिम-गब्भक्कंतिय-पज्जत्त-अपज्जत्ता । [१४८५-९] इसी प्रकार भुजपरिसर्प - ( स्थलचर - तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर) के भी सम्मूच्छिम एवं गर्भज (तथा दोनों के) पर्याप्तक और अपर्याप्तक ( ये चार भेद समझने चाहिए)। १४८६. [ १ ] खहयरा दुविहा पण्णत्ता । तं जहा सम्मुच्छिमा या गब्भववंतिया य । - [१४८६-१] खेचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर भी दो प्रकार का कहा गया है, यथासम्मूच्छिम और गर्भज । [२] सम्मुच्छिमा दुविहा पण्णत्ता । तं जहा - पज्जत्ता य अपज्जत्ता य । [१४८६ - २] सम्मूच्छिम - (खेचर-ति० - पं०- औदारिकशरीर) दो प्रकार का कहा गया है, यथा पर्याप्त और अपर्याप्त । [ ३ ] गब्भवद्वंतिया वि पज्जत्ता य अपज्जत्ता य । [१४८६-३] गर्भज (खेचर- तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर) भी पर्याप्त और अपर्याप्त (के
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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