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________________ बीसवाँ अन्तक्रियापद] [४४७ ॐ जो साधु रजोहरण आदि साधुवेष से स्वलिंगी हों, किन्तु सम्यग्दार्शन से भ्रष्ट हों, ऐसे निह्नव ।। इनमें से कोई देव हो तो किस देवलोक तक जाता है ? इसके लिए तालिका देखिये - क्रम साधक का प्रकार देवलोक में कहाँ से कहाँ तक जाता है ? १. असंयत भव्यद्रव्यदेव भवनवासी से नौ ग्रैवेयक देवों तक २. संयम का अविराधक सौधर्मकल्प से सर्वार्थसिद्धविमान तक ३. संयम का विराधक भवनपति देवों से लेकर सौधर्मकल्प तक ४. संयमासंयम (देशविरति)का अविराधक सौधर्मकल्प से अच्युतकल्प तक संयमासंयम का विराधक भवनवासी से ज्योतिष्क देवों तक ६. अकामनिर्जराशील असंज्ञी भवनवासी से वाणव्यन्तर देवों तक ७. तापस भवनवासी से ज्योतिष्क देवों तक ८. कान्दर्पिक भवनवासी से सौधर्मकल्प तक चरक-परिव्राजक भवनवासी देवों से ब्रह्मलोक तक १०. किल्विषिक भवनवासी से लान्तक तक ११. तैरश्चिक (अथवा देशविरति तिर्यञ्च) भवनवासी से सहस्रारकल्प तक १२. आजीविक या आजीवक भवनवासी से अच्युतकल्प तक १३. आभियोगिक भवनवासी से अच्युतकल्प तक १४. स्वलिंगी, किन्तु दर्शनभ्रष्ट (निह्नव) भवनवासी से ग्रैवेयक देव तक फलितार्थ - इस समग्रचर्चा के आधार से निम्नोक्त मन्तव्य फलित होता है - ___(१) आन्तरिक योग्यता के बिना भी बाह्य आचरण शुद्ध हो, तो जीव ग्रैवयेक देवलोक तक जाता है।। (२) इससे अन्ततोगत्वा जैनलिंग धारण करने वाले का भी महत्व है, यह नं. १ और नं. १४ के साधक के १. (क) प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्र ४०४ से ४०६ तक (ख) बृहत्कल्पभाष्य १२९४-१३०१, १३०२-१३०७, तथा १३०८ से १३१४ गा. (ग) प्रज्ञापना. प्रमेयबोधिनी टीका भा. ४. प.५७४ से ५७७ तक २. पण्णवणासुत्तं (प्रस्तावनादि) भा. २, पृ. ११५-११६
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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