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[प्रज्ञापनासूत्र
लिए दिए गए निर्णय से फलित होता है । (३) आन्तरिक योग्यतापूर्वक संयम का यथार्थ पालन करे तो सर्वोच्च सर्वाथसिद्ध देवलोक तक में जाता है । असंज्ञी-आयुष्यप्ररूपण
१४७१. कतिविहे णं भंते ! असण्णिआउए पण्णत्ते ?
गोयमा ! चउव्विहे असण्णिआउए पण्णत्ते । तं जहा-णेरइयअसण्णिआउए जाव देवअसण्णिआउए।
[१४७१ प्र.] भगवन् ! असंज्ञी-आयुष्य कितने प्रकार का कहा गया है ?
[१४७१ उ.] गौतम ! असंज्ञि-आयुष्य चार प्रकार का कहा गया है । वह इस प्रकार - नैरयिकअसंज्ञि-आयुष्य से लेकर देव-असंज्ञि-आयुष्य तक। .
१४७२. असण्णो णं भंते ! जीवे किं णेरइयाउयं पकरेइ जाव देवाउयं पकरेइ ?
गोयमा ! णेरइयायउयं पकरेइ जाव देवाउयं पकरेइ, णेरइयाउयं पकरेमाणे जहण्णेणं दस वाससहस्साइं उक्कोमेणं पलिओवमस्स असंखेजइभागंपकरेइ,तिरिक्खजोणियाउयंपकरेमाणेजहणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेजइभागंपकरेइ, एवं मणुयाउयंपि, देवाउयं जहाणेरइयाउयं।
[१४७२ प्र.] भगवन् ! क्या असंज्ञी (जीव) नैरयिक की आयु का उपार्जन करता है अथवा यावत् देवायु का उपार्जन करता है ?
[१४७२ उ.] गौतम ! वह नैरयिक-आयु का भी उपार्जन करता है, यावत् देवायु का भी उपार्जन करता है । नारकायु का उपार्जन करता हुआ असंज्ञी जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग की आयु का उपार्जन (बन्ध) कर लेता है । तिर्यञ्चयोनिक-आयुष्य का उपार्जन (बन्ध) करता हुआ वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त का और उष्कृष्टतः पल्योपम के असंख्यातवें भाग का उपार्जन करता है । इसी प्रकार मनुष्यायु का एवं देवायु का उपार्जन (बन्ध) भी नारकायु के समान कहना चाहिए ।
१४७३. एयस्सणं भंते ! णेरइयअसण्णिआउयस्स जाव देवअसण्णिआउयस्स य कतरे कतरेहितो अप्पा वा ४?
- गोयमा! सव्वत्थोवे देवअसण्णिआउए, मणुयअसण्णिआउए असंखेजगुणे,तिरिक्खजोणियअसण्णिआउए असंखेजगुणे, नेरइयअसन्निआउए असंखिजगुणे ।
॥पण्णवणाए भगवतोए वीसइमं अंतकिरियापयं समत्तं ॥ [१४७३ प्र.] भगवन् ! इस नैरयिक-असंज्ञी आयु यावत् देव-असंज्ञी-आयु में से कौन किससे अल्प,
१.
वही भा. २, पृ. ११६