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________________ ४४८ ] [प्रज्ञापनासूत्र लिए दिए गए निर्णय से फलित होता है । (३) आन्तरिक योग्यतापूर्वक संयम का यथार्थ पालन करे तो सर्वोच्च सर्वाथसिद्ध देवलोक तक में जाता है । असंज्ञी-आयुष्यप्ररूपण १४७१. कतिविहे णं भंते ! असण्णिआउए पण्णत्ते ? गोयमा ! चउव्विहे असण्णिआउए पण्णत्ते । तं जहा-णेरइयअसण्णिआउए जाव देवअसण्णिआउए। [१४७१ प्र.] भगवन् ! असंज्ञी-आयुष्य कितने प्रकार का कहा गया है ? [१४७१ उ.] गौतम ! असंज्ञि-आयुष्य चार प्रकार का कहा गया है । वह इस प्रकार - नैरयिकअसंज्ञि-आयुष्य से लेकर देव-असंज्ञि-आयुष्य तक। . १४७२. असण्णो णं भंते ! जीवे किं णेरइयाउयं पकरेइ जाव देवाउयं पकरेइ ? गोयमा ! णेरइयायउयं पकरेइ जाव देवाउयं पकरेइ, णेरइयाउयं पकरेमाणे जहण्णेणं दस वाससहस्साइं उक्कोमेणं पलिओवमस्स असंखेजइभागंपकरेइ,तिरिक्खजोणियाउयंपकरेमाणेजहणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेजइभागंपकरेइ, एवं मणुयाउयंपि, देवाउयं जहाणेरइयाउयं। [१४७२ प्र.] भगवन् ! क्या असंज्ञी (जीव) नैरयिक की आयु का उपार्जन करता है अथवा यावत् देवायु का उपार्जन करता है ? [१४७२ उ.] गौतम ! वह नैरयिक-आयु का भी उपार्जन करता है, यावत् देवायु का भी उपार्जन करता है । नारकायु का उपार्जन करता हुआ असंज्ञी जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग की आयु का उपार्जन (बन्ध) कर लेता है । तिर्यञ्चयोनिक-आयुष्य का उपार्जन (बन्ध) करता हुआ वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त का और उष्कृष्टतः पल्योपम के असंख्यातवें भाग का उपार्जन करता है । इसी प्रकार मनुष्यायु का एवं देवायु का उपार्जन (बन्ध) भी नारकायु के समान कहना चाहिए । १४७३. एयस्सणं भंते ! णेरइयअसण्णिआउयस्स जाव देवअसण्णिआउयस्स य कतरे कतरेहितो अप्पा वा ४? - गोयमा! सव्वत्थोवे देवअसण्णिआउए, मणुयअसण्णिआउए असंखेजगुणे,तिरिक्खजोणियअसण्णिआउए असंखेजगुणे, नेरइयअसन्निआउए असंखिजगुणे । ॥पण्णवणाए भगवतोए वीसइमं अंतकिरियापयं समत्तं ॥ [१४७३ प्र.] भगवन् ! इस नैरयिक-असंज्ञी आयु यावत् देव-असंज्ञी-आयु में से कौन किससे अल्प, १. वही भा. २, पृ. ११६
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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