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बीसवाँ अन्तक्रियापद]
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'च्युत' शब्द।
नारकों का उद्वर्त्तन तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों और मनुष्यों में - इस पाठ से स्पष्ट है कि नारकजीव नारकों में से निकल फिर सीधा नारकों, भवनपतियों और विकलेन्द्रियों में उत्पन्न नहीं हो सकता है, उसका कारण पूर्वोक्त ही है । वह नारकों में से निकल कर सीधा तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय जीवों और मनुष्यों में उत्पन्न हो सकता है । तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय और मनुष्य में उत्पन्न होने-वाले भूतपूर्व नारकों में से कोई-कोई केवलिप्रज्ञप्त धर्मश्रवण, केवलबोधि, श्रद्ध-प्रतीति-रुचि, आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, शील-व्रत-गुण-विरमण-प्रत्याख्यानपौषधोपवास-ग्रहण, अवधिज्ञान तक प्राप्त कर सकते हैं, किन्तु मनुष्यों में उत्पन्न होने वाले भूतपूर्व नारकों में से कोई-कोई इससे आगे बढ़कर अनगारत्व, मन:पर्याय ज्ञान, केवलज्ञान और सिद्धत्व को प्राप्त कर सकते
____विशिष्ट शब्दों के अर्थ - केवलिपन्नत्तं धम्मं - केवली द्वारा प्ररूपित-उपदिष्ट श्रुत-चारित्ररूप धर्म को। लभेज सवणयाए-श्रवण प्राप्त करता है । केवलं बोहिं : दो अर्थ - (१) केवल-विशुद्ध बोधिधर्मप्राप्ति (धर्मदेशना), (२) केवली द्वारा साक्षात् या परम्परा से उपदिष्ट (कैवलिक) बोधि । · · प्रश्न का आशय - केवलिप्रज्ञप्तधर्म का श्रोता क्या उपर्युक्त कैवलिक बोधि को यथोक्तरूप से जानतासमझता है ?
शील आदि शब्दों के विशिष्ट अर्थ - शील-ब्रह्मचर्य, व्रत-विविध द्रव्यादिविषयक नियम, गुण, भावना आदि अथवा उत्तरगुण, विरमण-अतीत स्थूल प्राणातिपात आदि से विरति, प्रत्याख्यान - अनागतकालीन स्थूल प्राणातिपात आदि का त्याग, पोषधोपवास - पोषध-धर्म का पोषण करने वाले अष्टमी आदि पों में उपवास पोषधोपवास।
- अवधिज्ञान किनको? - तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों और मनुष्यों को भवप्रत्यय अवधिज्ञान नहीं होता, गुणप्रत्यय होता है ।शीलव्रत आदि विषयक गुणों के धारकों में जिनके उत्कृष्ट परिणाम होते हैं, उनको अवधिज्ञानावरणकर्म का क्षयोपशम हो जाता है और उन्हें (तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय जीवों और मनुष्यों को, अवधिज्ञान प्राप्त होता है, सभी को नहीं ।
मनःपर्यायज्ञान किनको? - मनःपर्यायज्ञान अनगार को ही प्राप्त होता है, वह भी उसी संयमी को होता है, जो समस्त प्रमादों से रहित हो, विविध ऋद्धियों से सम्पन्न हो । इसलिए तिर्यञ्चों को अनगारत्व भी
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(ख) षट्खण्डागम भा.६, पृ. ४७७ में विशेषार्थ
(क) वही, पृ. ११३ प्रज्ञापना. प्रमेयबोधिनीटीका, भा.४, पृ.५०९ प्रज्ञापना. मलय. वृत्ति पत्र ३९९ वही, पत्र ३९९