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केवलज्ञान को उपार्जित कर सकता है ?
[उ.] गौतम ! ( उनमें से) कोई केवलान को उपार्जित कर सकता है (और) कोई उपार्जित नहीं कर सकता है।
[ प्रज्ञापनासूत्र
[५] जे णं भंते! केवलणाणं उप्पाडेजा से णं सिज्झेज्जा बुज्झेजा मुच्चेजा सव्वदुक्खाणं अंत करेजा ?
गोयमा ! सिज्झेजा जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेज्जा ।
[१४२१-५ प्र.] भगवन् ! जो (मनुष्य) केवलज्ञान को उपार्जित कर लेता है, (क्या) वह सिद्ध हो सकता है, बुद्ध हो सकता है, मुक्त हो सकता है, यावत् सब दुःखों का अन्त कर सकता है ?
[उ.] (हाँ) गौतम ! वह (अवश्य ही) सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो जाता है, यावत् समस्त दुःखों का अन्त कर देता है।
१४२२. रइए णं भंते ! णेरइएहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता वाणमंतर - जोइसिय-वेमाणिएसु उववज्जेज्जा ?
गोया ! णो इण समट्टे ।
[१४२२ प्र.] भगवन् ! नारक जीव, नारकों में से निकल कर (क्या सीधा ) वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क या वैमानिकों में उत्पन्न होता है ?
[उ.] गौतम ! यह अर्थ (बात) समर्थ (शक्य) नहीं है।
विवेचन - नारकों में से नारकादि में उत्पत्ति, धर्मश्रवणादि-विषयक चर्चा - प्रस्तुत द्वार के प्रथम ६ सूत्रों (सू. १४१७ से १४२२ तक) में नारकों में से मर सीधे नारकों, भवनपतियों, विकलेन्द्रियों, तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों और मनुष्यों, वाणव्यन्तरों, ज्योतिष्कों और वैमानिकों में उत्पत्ति की चर्चा है। फिर तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों और मनुष्यों में उत्पन्न होने वाले जीव केवलिप्रज्ञप्त धर्मश्रवण, शुद्ध बोधि, श्रद्धा, प्रतीति, रुचि, मति - श्रुतज्ञान, शील - व्रत-गुण-विरमण - प्रत्याख्यान - पौषधोपवासग्रहण, अवधि - मनः पर्यव - केवल ज्ञान एवं सिद्धि (मुक्ति), इनमें से क्या-क्या प्राप्त कर सकते हैं ? इसकी चर्चा की गई है।
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उद्वर्त्तनः विशेषार्थ में प्रस्तुत शास्त्र में 'उद्वृत्त' शब्द समस्त गतियों में होने वाले 'मरण' के लिए प्रयुक्त किया गया है, जबकि 'षट्खण्डागम' में मरण के लिए तीन शब्द प्रयुक्त किये गए हैं- नरक, भवनवासी, वाणव्यन्तर एवं ज्योतिष्क गति में से मर कर जाने वालों के लिए 'उद्वृत्त', तिर्यञ्च और मनुष्यगति में से मर कर जाने वालों के लिए 'कालगत' और वैमानिक देवों में से मर कर जाने वालों के लिए
पण्णवणासुत्तं (परिशिष्ट) भा. २, पृ. ११३
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