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बीसवाँ अन्तक्रियापद]
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१४२१.[१] णेरइए णं भंते ! णेरइएहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता मणूसेसु उववजेजा ? गोयमा ! अत्थेगइए उववजेजा, अत्यंगइए णो उववजेजा।
[१४२१-१ प्र.] भगवन् ! नारक, जीव नारकों में से अद्वर्तन (निकल) कर क्या सीधा मनुष्यों में उत्पन्न हो जाता है ?
[उ.] गौतम ! (उनमें से) कोई (मनुष्यों में) उत्पन्न होता है और कोई उत्पन्न नहीं होता है । [२] जे णं भंते ! उववजेज्जा से णं केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेजा सवणयाए ?
गोयमा !जहाणं पंचेंदियतिरिक्खजोणिएसु(सु. १४२०[२-७]) जावजेणंभंते ! ओहिणाणं उप्पाडेज्जा से णं संचाएजा मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए ?
गोयमा ! अत्थेगइए संचाएज्जा, अत्थेगइए णो संचाएज्जा ।
[१४२१-२ प्र.] भगवन् ! जो (नारकों में से अनन्तरागत जीव मनुष्यों में) उत्पन्न होता है, (क्या) वह केवलि-प्रज्ञप्त धर्मश्रवण प्राप्त कर लेता है ?
' [१४२१-२ उ.] गौतम ! जैसे पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में (आकर उत्पन्न जीव) के विषय में धर्मश्रवण से (लेकर) अवधिज्ञान प्राप्त कर लेता है, तक कहा है, वैसे ही यहाँ कहना चाहिए। (विशेष प्रश्न यह है-) भगवन् ! जो (मनुष्य) अवधिज्ञान प्राप्त कर लेता है, (क्या) वह मुण्डित होकर अगारत्व से अनगारधर्म में प्रवजित हो सकता है ?
[उ.] गौतम ! (उनमें से) कोई प्रव्रजित हो सकता है और कोई प्रव्रजित नहीं हो सकता है।
[३]जेणं भंते ! संचाएजा मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए से णं मणपज्जवणाणं उप्पाडेज्जा?
गोयमा ! अत्थेगइए उप्पाडेजा, अत्थेगइए णो उप्पाडेजा।
[१४२१-३ प्र.] भगवन् ! जो (मनुष्य) मुण्डित होकर अगारित्व से अनगारधर्म में प्रव्रजित होने से समर्थ है, (क्या) वह मनः पर्यवज्ञान को उपार्जित कर सकता है ?
[उ.] गौतम ! (उनमें से) कोई (मनःपर्यवज्ञान को) उपार्जित कर सकता है (और) कोई उपार्जित नहीं कर सकता है ।
[४] जे णं भंते ! मणपज्जवणाणं उप्पाडेजा से णं केवलणाणं उप्पाडेजा? गोयमा ! अत्थेगइए उप्पाडेजा, अत्थेगइए णो उप्पाडेजा । [१४२१-४ प्र.] भगवन् ! जो (मनुष्य) मनःपर्यवज्ञान को उपार्जित कर लेता है, (क्या) वह