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[प्रज्ञापनासूत्र
[५]जेणंभंते ! सद्दहेजा पत्तिएजारोएजा से णं आभिणिबोहियणाण-सुयणाणाई उप्पाडेजा? हंता ! गोयमा ! उप्पाडेजा।
[१४२०-५ प्र.] भगवन् ! जो (उस पर) श्रद्धा, प्रतीति और रुचि करता है (क्या) वह आभिनिबोधिकज्ञान (और) श्रुतज्ञान उपार्जित (प्राप्त) कर लेता है ?
[उ.] हाँ गौतम ! वह (इन ज्ञानों को) प्राप्त कर लेता है ।
[६] जे णं भंते ! आभिणिबोहियणाण-सुयणाणाइं उप्पाडेजा से णं संचाएज्जा सीलं वा वयं गुणं वा वेरमणं वा पच्चक्खाणं वा पोसहोववासं वा पडिवजित्तए ?
गोयमा ! अत्थेगइए संचाएज्जा, अत्थेगइए णो पडिवजित्तए ?
[१४२०-६ प्र.] भगवन् ! जो (अनन्तरागत तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय) आभिनिबोधिकज्ञान एवं श्रुतज्ञान को प्राप्त कर लेता है, (क्या) वह शील, व्रत, गुण, विरमण, प्रत्याख्यान अथवा पौषधोपवास अंगीकार करने में समर्थ होता है ?
- [उ.] गौतम ! (कोई तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय) (शील यावत् पौषधोपवास की अंगीकार) कर सकता है और कोई नहीं कर सकता है ।
[७] जे णं भंते ! संचाएजा सीलं वा जाव पोसहोववासं वा पडिवजित्तए से णं ओहिणाणं उप्पाडेज्जा?
गोयमा ! अत्थेगइए उप्पाडेजा, अत्थेगइए णो उप्पाडेजा।
[१४२०-७ प्र.] भगवन् ! जो (तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय) शील यावत् पौषधोपवास अंगीकार कर सकता है (क्या) वह अवधिज्ञान को उपार्जित (प्राप्त) कर सकता है ?
[उ.] गौतम ! (उनमें से) कोई (अवधिज्ञान) प्राप्त कर सकता है (और) कोई प्राप्त नहीं कर सकता
[८] जे णं भंते ओहिणाणं अप्पाडेजा से णं संचाएजा मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए?
गोयमा ! णो इणठे समढे।..
[१४२०-८ प्र.] भगवन् ! जो (तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय) अवधिज्ञान उपार्जित कर लेता है, (क्या) वह मुण्डित हो कर अगारत्व से अनगारत्व (अनगारधर्म) में प्रव्रजित होने में समर्थ है ?
[उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है ।