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________________ ४२२ ] [प्रज्ञापनासूत्र [५]जेणंभंते ! सद्दहेजा पत्तिएजारोएजा से णं आभिणिबोहियणाण-सुयणाणाई उप्पाडेजा? हंता ! गोयमा ! उप्पाडेजा। [१४२०-५ प्र.] भगवन् ! जो (उस पर) श्रद्धा, प्रतीति और रुचि करता है (क्या) वह आभिनिबोधिकज्ञान (और) श्रुतज्ञान उपार्जित (प्राप्त) कर लेता है ? [उ.] हाँ गौतम ! वह (इन ज्ञानों को) प्राप्त कर लेता है । [६] जे णं भंते ! आभिणिबोहियणाण-सुयणाणाइं उप्पाडेजा से णं संचाएज्जा सीलं वा वयं गुणं वा वेरमणं वा पच्चक्खाणं वा पोसहोववासं वा पडिवजित्तए ? गोयमा ! अत्थेगइए संचाएज्जा, अत्थेगइए णो पडिवजित्तए ? [१४२०-६ प्र.] भगवन् ! जो (अनन्तरागत तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय) आभिनिबोधिकज्ञान एवं श्रुतज्ञान को प्राप्त कर लेता है, (क्या) वह शील, व्रत, गुण, विरमण, प्रत्याख्यान अथवा पौषधोपवास अंगीकार करने में समर्थ होता है ? - [उ.] गौतम ! (कोई तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय) (शील यावत् पौषधोपवास की अंगीकार) कर सकता है और कोई नहीं कर सकता है । [७] जे णं भंते ! संचाएजा सीलं वा जाव पोसहोववासं वा पडिवजित्तए से णं ओहिणाणं उप्पाडेज्जा? गोयमा ! अत्थेगइए उप्पाडेजा, अत्थेगइए णो उप्पाडेजा। [१४२०-७ प्र.] भगवन् ! जो (तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय) शील यावत् पौषधोपवास अंगीकार कर सकता है (क्या) वह अवधिज्ञान को उपार्जित (प्राप्त) कर सकता है ? [उ.] गौतम ! (उनमें से) कोई (अवधिज्ञान) प्राप्त कर सकता है (और) कोई प्राप्त नहीं कर सकता [८] जे णं भंते ओहिणाणं अप्पाडेजा से णं संचाएजा मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए? गोयमा ! णो इणठे समढे।.. [१४२०-८ प्र.] भगवन् ! जो (तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय) अवधिज्ञान उपार्जित कर लेता है, (क्या) वह मुण्डित हो कर अगारत्व से अनगारत्व (अनगारधर्म) में प्रव्रजित होने में समर्थ है ? [उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है ।
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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