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बीसवाँ अन्तक्रियापद]
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[१४१९ प्र.] इसी तरह (नैरयिकों में से निकल कर) निरन्तर (व्यवधानरहित-सीधा) (नागकुमारों से ले कर) चतुरिन्द्रिय जीवों तक में (उत्पन्न हो सकता है ?) ऐसी पृच्छा करनी चाहिए ।
[उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं ।
१४२०. [१] णेरइए णं भंते ! णेरइएहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता पंचेंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा ! अत्थेगइए अववजेजा, अत्यंगइए णो उववजेजा।
[१४२०-१ प्र.] भगवन् ! नारक जीव नारकों में से उद्वर्त्तन कर अन्तर (व्यवधान) रहित (सीधा) पंचेन्द्रियतिर्यञ्च में अत्पन्न हो सकता है ?
गौतम ! (इनमें से) कोई उत्पन्न हो सकता है (और) कोई उत्पन्न नहीं हो सकता ।
[२] जे णं भंते ! णेरइएहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता पंचेंदियतिरिक्खजोणिएसु उववजेजा से णं केवलिपण्णत्तं धर्म लभेजा सवणयाए ?
गोयमा ! अत्थेगइए लभेजा अत्थेगइए णो लभेजा।
[१४२०-२ प्र.] भगवन् ! जो नारक नारकों में से निकल कर सीधा तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होता है, क्या वह केवलिप्ररूपित धर्मश्रवण को प्राप्त कर सकता है ?
[उ.] गौतम ! (उनमें से) कोई धर्मश्रवण को प्राप्त कर सकता है और कोई नहीं कर सकता। [३] जे णं भंते ! केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेजा सवणयाए से णं केवलं बोहिं बुझेजा। गोयमा ! अत्थेगइए बुझेजा, अत्थेगइए णो बुझेजा ।
[१४२०-३ प्र.] भगवन् ! जो (पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों में उत्पन्न जीव) केवलि-प्ररूपित धर्मश्रवण प्राप्त कर सकता है, क्या वह केवल (शुद्ध) वोधि को समझ सकता है ?
[उ.] गौतम ! (इनमें से) कोई (केवलबोधि) को समझ पाता है (और) कोई नहीं समझ पाता। [४] जे णं भंते ! केवलं बोहिं बुझेजा से णं सद्दहेज्जा पत्तिएजा रोएज्जा? गोयमा ! सद्दहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा ।
[१४२०-४ प्र.] भगवन् ! जो (नैरयिकों से तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय में अनन्तरागत जीव) केवल बोधि को समझ पाता है, क्या वह (उस पर) श्रद्धा करता है, प्रतीति करता है (तथा) रुचि करता है ?
[उ.] (हाँ) गौतम ! (वह) श्रद्धा करता है, प्रतीति करता है (तथा) रुचि करता है ।