SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 437
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४१६ ] [प्रज्ञापनासूत्र [१४१०-१ प्र.] भगवन् ! नारक (जीव) क्या अनन्तरागत अन्तक्रिया करते हैं, अथवा पराम्परागत अन्तक्रिया करते हैं ? [उ.] गौतम ! (वे) अनन्तरागत भी अन्तक्रिया करते हैं और परम्परागत भी अन्तक्रिया करते हैं । [२] एवं रयणप्पभापुढविणेरइया वि जाव पंकप्पभापुढविणेरड्या । [१४१०-२ प्र.] इसी प्रकार रत्नप्रभा नरकभूमि के नारकों से लेकर पंकप्रभा नरकभूमि के नारकों तक की अन्तक्रिया के विषय में समझ लेना चाहिए । [३] धूमप्पभापुढविणेरड्या णं भंते ! पुच्छा। गोयमा ! णो अणंतरागया अंतकिरियं करेंति, परंपरागया अंतकिरियं करेंति । एवं जाव अहेसत्तमापुढविणेरइया । [१४१०-३ प्र.] (अब) प्रश्न है - क्या धूमप्रभापृथ्वी के अनन्तरागत नारक अन्तक्रिया करते हैं या परम्परागत अन्तक्रिया करते हैं ? [उ.] हे गोतम ! (वे) अनन्तरागत अन्तक्रिया नहीं करते, (किन्तु) परम्परागत अन्तक्रिया करते हैं । इसी प्रकार अध:सप्तमपृथ्वी (तमस्तमाभूमि तक) के नैरयिकों (की अन्तक्रिया के विषय में जान लेना चाहिए)। १४११. असुरकुमारा जाव थणियकुमारा पुढवि-आउ-वणस्सइकाइया य अर्णतरागया वि अंतकिरियं करेंति, परम्परागया वि अंतकिरियं करेंति । [१४११] असुरकुमार से (लेकर) स्तनितकुमार (तक के भवनपति देव) तथा पृथ्वीकायिक, अप्कायिक और वनस्पतिकायिक और (एकेन्द्रिय जोव) अनन्तरागत भी अन्तक्रिया करते हैं और परम्परागत भी अन्तक्रिया करते हैं । १४१२. तेउ-वाउ-बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिदिया णो अणंतरगया अंतकिरियं पकरेंति, परंपरागया अंतकिरियं पकरेंति । ___ [१४१२] तेजस्कायिक, वायुकायिक (एवं) द्वोन्द्रिय, त्रीन्द्रिय (और) चतुरिन्द्रिय (विकलेन्द्रिय त्रस जीव) अनन्तरागत अन्तक्रिया नहीं करते, किन्तु परम्परागत अन्तक्रिया करते है । १४१३. सेसा अणंतरागया वि अंतकिरियं पकरेंति, परंपरागया विअंतकिरियंपकरेंति ।दारं२॥ [१४१३] शेष (सभी जीव) अनन्तरागत भी अन्तक्रिया करते हैं और परम्परागत भी अन्तक्रिया करते -द्वितीय द्वार ॥२॥
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy