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बीसवाँ अन्तक्रियापद ]
[१४०९] इसी प्रकार असुरकुमार से लेकर वैमानिक तक के विषय में भी समझ लेना चाहिए । इसी तरह चौवीस दण्डकों (में से प्रत्येक) का चौवीस दण्डकों में ( अन्तक्रिया का निरूपण करना चाहिए ।) (वे सब मिला कर २४४ X २४ = ) ५७६ (प्रश्नोत्तर) हो जाते हैं । प्रथम द्वार ॥ १ ॥
विवेचन - नारक की नारकादि में अन्तक्रिया को असमर्थता का कारण नारक जीव नारक पर्याय में रहते हुए अन्तक्रिया इसलिए नहीं कर सकते कि समस्त कर्मों का क्षय (मोक्ष) तभी होता है, जब सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चरित्र, ये तीनों मिलकर प्रकर्ष को प्राप्त हों । नैरयिक- पर्याय से सम्यग्दर्शन का प्रकर्ष कदाचित् क्षायिक - सम्यग्दृष्टि जीव में हो भी जाए, किन्तु सम्यग्ज्ञान के प्रकर्ष की योग्यता और सम्यक्चारित्र के परिणाम नारकपर्याय में उत्पन्न हो नहीं सकते, क्योंकि नारक भव का ऐसा ही स्वभाव है ।
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इसी प्रकार नारकजीव, असुरकुमारों से लेकर स्तनितकुमारों में, पृथ्वीकायिक आदि एकेन्द्रियों में, विकलेन्द्रियों में, पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों में, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क एवं वैमानिक देवों में रहता हुआ अन्तक्रिया नहीं कर सकता । इसका भी कारण वही भवस्वभाव है ।
मनुष्यों में नारकादि के जीवों की अन्तक्रिया - मनुष्य पर्याय से आया हुआ कोई नारक, जिसे मनुष्यत्व आदि की परिपूर्ण सामग्री प्राप्त हो गई हो, वह पूर्वोक्त प्रकार क्रमशः समस्त कर्म क्षय करके अन्तक्रिया करता है और कोई नारक, जिसे परिपूर्ण सामग्री प्राप्त नही होती, वह अन्तक्रिया नहीं कर पाता ।
इसी प्रकार मनुष्यों में आया हुआ कोई-कोई असुरकुमार आदि (असुरकुमार से लेकर वैमानिक देव तक) का जीव, जिसे परिपूर्ण सामग्री प्राप्त हो जाती है, वह अन्तक्रिया कर लेता है और जिसे परिपूर्ण सामग्री नहीं मिलती, वह अन्तक्रिया नहीं कर पाता ।
१.
२.
३.
प्रत्येक दण्डकवर्ती जीव की चौवीस दण्डकवर्ती जीवों में अन्तक्रिया - नारक आदि प्रत्येक दण्डक का जीव, नारक आदि दण्डकों में से प्रत्येक दण्डक में रहते हुए अन्तक्रिया कर सकता है या नहीं ? इस प्रकार के कुल २४x२४ = ५७६ प्रश्नोत्तर विकल्प हो जाते हैं ।
द्वितीय : अनन्तरद्वार
१४१०. [१] णेरड्या णं भंते ! कि अर्णतरागता अंतकिरियं करंति परंपरागया अंतकिरियं करेंति ?
गोयमा ! अणंतरागया वि अंतकिरियं करेंति, परंपरागता वि अंतकिरियं करेति ।
प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्र ३९७
वही, पत्र ३९७
वही, पत्र ३९७