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________________ [ प्रज्ञापनासूत्र विवेचन - प्रस्तुत सूत्र के प्रथम अंश में समुच्चय जीवों की अन्तक्रिया के सम्बन्ध में चर्चा की गई है, जबकि द्वितीय अंश में नैरयिक से वैमानिक तक चौवीस दण्डकवर्ती जीवों की अन्तक्रिया के विषय में चर्चा है । ४१४ ] अन्तक्रिया - प्राप्ति - अप्राप्ति का रहस्य - जो जीव तथाविध भव्यत्व के परिपाकवश मनुष्यत्व आदि समग्र सामग्री प्राप्त कर के उस सामग्री के बल से प्रकट होने वाले अतिप्रबल वीर्य के उल्लास से क्षपक श्रेणी पर आरूढ़ होकर केवलज्ञान प्राप्त करके केवल घातिकर्मों का ही नहीं अघातिकर्मों का भी क्षय कर देता है, वही अन्तक्रिया करता है, अर्थात् समस्त कर्मो का क्षय करके मोक्ष प्राप्त करता है। इससे विपरीत प्रकार का जीव अन्तक्रिया (मोक्ष) प्राप्त नहीं कर पाता । इसी रहस्य के अनुसार समस्त जीवों की अन्तक्रिया की प्राप्तिअप्राप्ति समझ लेनी चाहिए । १४०८.[ १ ] णेरइए णं भंते ! णेरइएस अंतकिरियं करेज्जा ? गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे । १. [१४०८-१ प्र.] क्या नारक, (नरकगति) में रहता हुआ अन्तक्रिया करता है ? [उ.] गौतम ! यह अर्थ (बात) समर्थ (शक्य) नहीं है । [ २ ] णेरइए णं भंते ! असुरकुमारेसु अंतकिरियं करेज्जा ? गोमा ! णो इट्ठे समट्ठे । [१४०८-२ प्र.] भगवन् ! क्या नारक, असुरकुमारों में अन्तक्रिया करता है ? [3] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । [ ३ ] एवं जाव वेमाणिएसु । णवरं मणूसेसु अंतकिरियं करेज त्ति पुच्छा । गोयमा ! अत्थेगइए करेज्जा, अत्थेगइए णो करेज्जा । [१४०८-३] इसी प्रकार नारक की वैमानिकों तक में ( अन्तक्रिया की असमर्थता समझ लेनी चाहिए।) [प्र.] विशेष प्रश्न ( यह है कि ) नारक क्या मनुष्यों में (आकर ) अन्तक्रिया करता है ? [उ.] गौतम ! कोई नारक (अक्रिया) करता है और कोई नहीं करता । १४०९. एवं असुरकुमारे जाव वेमाणिए । एवमेते चडवीसं चउवीसदंडगा ५७६ भवंति । ॥ दारं १ ॥ प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्र ३९७
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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