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________________ 4. १. वीसइमं : अंतकिरियापयं वीसवाँ : अन्तक्रियापद प्राथमिक यह प्रज्ञापनासूत्र का बीसवाँ अन्तक्रियापद है । इस पद में विविध पहलुओं से अन्तक्रिया और उससे होने वाली विशिष्ट उपलब्धियों के विषय गूढ़ विचारणा की गई है । में भारत का प्रत्येक आस्तिक धर्म और दर्शन या मत-पंथ पुनर्जन्म एवं मोक्ष मानता है और अगला जन्म अच्छा मिले या जन्म-मरण से सर्वथा छुटकारा मिले, इसके लिए विविध साधनाएँ, तप, संयम, त्याग, प्रत्याख्यान, व्रत, नियम आदि का निर्देश करता है । प्राणी का जन्म लेना जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही, बल्कि उससे भी अधिक उसके जीवन का अन्त महत्वपूर्ण माना जाता है । अन्तक्रियापद में इसी का विचार किया गया है, ताकि प्रत्येक मुमुक्षु साधक यह जान सके कि किसकी अन्तक्रिया अच्छी और बुरी होती है और क्यों ? 'अन्तक्रिया का अर्थ है - भव (जन्म) का अन्त करने वाली क्रिया । इस क्रिया से दो परिणाम आते हैंया तो नया भव (जन्म) मिलता है, अथवा मनुष्यभव का सर्वथा अन्त करके जन्म-मरण से सर्वथा मुक्त हो जाता है । अतः अन्तक्रिया शब्द यहाँ दोनों अर्थो में प्रयुक्त हुआ है - (१) मोक्ष, (२) इस भव के शरीरदि से छुटकारा - मरण । इस अन्तक्रिया का विचार प्रस्तुत पद में चौवीस दण्डकवर्ती जीवों में दस द्वारों द्वारा किया गया है(१) अन्तक्रियाद्वार, (२) अनन्तरद्वार, (३) एकसमयद्वार, (४) उद्वृत्तद्वार, (५) तीर्थकरद्वार, (६) चक्रीद्वार, (७) बलदेवद्वार, (८) वासुदेवद्वार, (९) माण्डलिकद्वार और (१०) रत्नद्वार। प्रस्तुतपद के उपसंहार में बतलाया गया है, कौन-सा आराधक या विराधक मर कर कौन-कौन से देवों में उत्पन्न होता है ? अन्त में अन्तक्रिया से सम्बन्धित असंज्ञी (अकामनिर्जरायुक्त जीव) के आयुष्यबन्ध की और प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्र ३९७
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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