________________
४१०]
। प्रज्ञापनासूत्र
उसके अल्पबहुत्व की चर्चा है । + प्रथम अन्तक्रियाद्वार-में यह विचारणा की गई है कि कौन जीव अन्तक्रिया (मोक्षप्राप्ति) कर लेता है,
कौन नहीं ? एकमात्र मनुष्य ही इस प्रकार की अन्तक्रिया का अधिकारी है । जीव के नारक आदि अनेक पर्याय होते है । अत: नारकपर्याय में रहा जीव मनुष्यभव में जाकर तथाविधयोग्यता प्राप्त करके अन्तक्रिया (मोक्षप्राप्ति) कर सकता है, इसलिए कहा जाता है कोई नारक मुक्त हो सकता
है, कोई नहीं। + द्वितीय अनन्तरद्वार-में यह विचारणा की गई है कि नारकादि जीव अनन्तरागत अन्तक्रिया करते हैं या
परम्परागत अन्तक्रिया करते हैं ? अर्थात्-कोई जीव नारकादि भव में से मर कर व्यवधान बिना ही मनुष्यभव में आकर मोक्ष प्राप्त कर लेता है, अथवा 'नारकादि भव के पश्चात् एक या अनेक भव करके फिर मनुष्यभव में आकर मुक्ति प्राप्त करता है ? इसका उत्तर यह है कि प्रारम्भ के चार नरकों में से आने वाला नारक अनन्तरागत और परम्परागत दोनों प्रकार से अन्तक्रिया कर सकता है । परन्तु बाद के तीन नारकों में से आने वाला नारक परम्परा से ही अन्तक्रिया कर पाता है, अर्थात्-नरक के बाद एक या अनेक भव करके फिर मनुष्यभव में आकर तथाविध साधना करके मोक्ष प्राप्त कर सकता है। भवनपति एवं पृथ्वी-अप्-वनस्पतिकाय में से आने वाले जीव दोनों प्रकार से अन्तक्रिया कर सकते
है। तेजस्कायिक, वायुकायिक एवं विकलेन्द्रिय जीव परम्परागत ही अन्तक्रिया कर सकते है । + तृतीय एकसमयद्वार-में अनन्तरागत अन्तक्रिया कर सकने वाले नारकादि एक समय में जघन्य और
उत्कृष्ट कितनी संख्या में अन्तक्रिया करते हैं ? इसकी प्ररूपणा की गई है । चतुर्थ उद्वृत्तद्वार-में यह बताया गया है कि नैरयिक आदि चौवीस दण्डकवर्ती जीव मर कर सीधा (बिना व्यावधान के) चौवीस दण्डकों में से कहाँ उत्पन्न हो सकता है ? यद्यपि यहाँ उद्वृत्त शब्द समस्त गतियों में होने वाले मरण के लिए प्रयुक्त है, परन्तु षट्खण्डागम में उसके बदले उवृत्त, कालगत और च्युत शब्दों का प्रयोग किया गया है । सामान्यतया जैनागमों में वैमानिक तथा ज्योतिष्क देवों के अन्यत्र जाने के लिए कालगत और नारक, भवनवासी और वाणव्यन्तर के लिए उद्वृत्त शब्दप्रयोग दिखाई देता है । इसके साथ ही इस द्वार में मर कर उस-उस स्थान में जाने के बाद जीव क्रमशः धर्मश्रवण, बोध, श्रद्धा, मतिश्रुतज्ञान, व्रतग्रहण, अवधिज्ञान, अनगारत्व, मनःपर्यायज्ञान, केवलज्ञान और अन्तक्रिया (सिद्धि), इन में से क्या-क्या प्राप्त हो सकते है ? इसकी चर्चा है ।
२. ३.
प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्र ३९७ वही, पत्र ३९७ षट्खण्डागम पुस्तक ६, पृ. ४७७