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________________ ४०२] [प्रज्ञापनासूत्र [१३८८ प्र.] भगवन् ! नोसूक्ष्म-नोबादर कितने काल तक पूर्वोक्त पर्याय से युक्त रहता है ? [१३८८ उ.] गौतम ! यह पर्याय सादि-अपर्यवसित है। अठारहवाँ द्वार ॥१८॥ विवेचन- अठारहवाँ सूक्ष्मद्वार- प्रस्तुत तीन सूत्रों (सू. १३८३ से १३८८ तक) में सूक्ष्म, बादर नोसूक्ष्म-नोबादर के जघन्य और उत्कृष्ट अवस्थानकाल का निरूपण किया गया है। सूक्ष्म जीव का अवस्थानकाल- सूक्ष्म-जीव जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट असंख्यातकाल तक सूक्ष्मपर्याययुक्त रहता है। वह असंख्ययातकाल पृथ्वीकायिक जीव की कायस्थिति के काल जितना समझना चाहिए। नोसूक्ष्म-नोबादर जीव- सिद्ध हैं और सिद्धपर्याय सदाकाल रहती है। उन्नीसवाँ संज्ञीद्वार १३८९. सण्णी णं भंते ! ० पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं सातिरेगे। [१३८९ प्र.] भगवन् ! संज्ञी जीव कितने काल तक संज्ञीपर्याय में लगातर रहता है ? [१३८९ उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट कुछ अधिक शतसागरोपमपृथक्त्वकाल तक (निरन्तर संज्ञीपर्याय में रहता है)। १३९०.असण्णी णं भंते ! ० पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। [१३९० प्र.] भगवन् ! असंज्ञी जीव असंज्ञी पर्याय में कितने काल तक रहता है ? [१३९० उ.] गौतम ! वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल तक (असंज्ञी जीव असंज्ञीपर्याय में निरन्तर रहता है)। १३९१. णोसण्णी णोअसण्णी णं पुच्छा ? गोयमा ! सादीए अपजवसिए । दारं १९॥ [१३९१ प्र.] भगवन् ! नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी जीव कितने काल तक नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी रहता है ? [१३९१ उ.] गौतम ! (वह) सादि-अपर्यवसित है। - उन्नीसवाँ द्वार ॥१९॥ विवेचन - उन्नीसवाँ संज्ञीद्वार - प्रस्तुत तीन सूत्रों (सू. १३८९ से १३९१ तक) में संज्ञी, असंज्ञी और प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक ३९५
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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