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[प्रज्ञापनासूत्र
[१३८८ प्र.] भगवन् ! नोसूक्ष्म-नोबादर कितने काल तक पूर्वोक्त पर्याय से युक्त रहता है ? [१३८८ उ.] गौतम ! यह पर्याय सादि-अपर्यवसित है।
अठारहवाँ द्वार ॥१८॥ विवेचन- अठारहवाँ सूक्ष्मद्वार- प्रस्तुत तीन सूत्रों (सू. १३८३ से १३८८ तक) में सूक्ष्म, बादर नोसूक्ष्म-नोबादर के जघन्य और उत्कृष्ट अवस्थानकाल का निरूपण किया गया है।
सूक्ष्म जीव का अवस्थानकाल- सूक्ष्म-जीव जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट असंख्यातकाल तक सूक्ष्मपर्याययुक्त रहता है। वह असंख्ययातकाल पृथ्वीकायिक जीव की कायस्थिति के काल जितना समझना चाहिए।
नोसूक्ष्म-नोबादर जीव- सिद्ध हैं और सिद्धपर्याय सदाकाल रहती है। उन्नीसवाँ संज्ञीद्वार
१३८९. सण्णी णं भंते ! ० पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं सातिरेगे। [१३८९ प्र.] भगवन् ! संज्ञी जीव कितने काल तक संज्ञीपर्याय में लगातर रहता है ?
[१३८९ उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट कुछ अधिक शतसागरोपमपृथक्त्वकाल तक (निरन्तर संज्ञीपर्याय में रहता है)।
१३९०.असण्णी णं भंते ! ० पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। [१३९० प्र.] भगवन् ! असंज्ञी जीव असंज्ञी पर्याय में कितने काल तक रहता है ?
[१३९० उ.] गौतम ! वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल तक (असंज्ञी जीव असंज्ञीपर्याय में निरन्तर रहता है)।
१३९१. णोसण्णी णोअसण्णी णं पुच्छा ? गोयमा ! सादीए अपजवसिए । दारं १९॥ [१३९१ प्र.] भगवन् ! नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी जीव कितने काल तक नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी रहता है ? [१३९१ उ.] गौतम ! (वह) सादि-अपर्यवसित है।
- उन्नीसवाँ द्वार ॥१९॥ विवेचन - उन्नीसवाँ संज्ञीद्वार - प्रस्तुत तीन सूत्रों (सू. १३८९ से १३९१ तक) में संज्ञी, असंज्ञी और
प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक ३९५