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________________ ३९४] [प्रज्ञापनासूत्रं [१३६४ प्र.] भगवन् ! आहारक जीव (लगातार) कितने काल तक आहारकरूप में रहता है? [१३६४ उ.] गौतम ! आहारक जीव दो प्रकार के कहे हैं, यथा- छद्मस्थ-आहारक और केवलीआहारक। १३६५. छउमत्थाहारए णं भंते ! छउमत्थाहारए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं खुड्डागभवग्गहणं दुसमऊणं, उक्कोसेणं असंखेनं कालं, असंखेजाओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अंगुलस्स संखेजइभाग। [१३६५ प्र.] भगवन् ! छद्मस्थ-आहारक कितने काल तक छद्मस्थ-आहारक के रूप में रहता है ? [१३६५ उ.] गौतम ! जघन्य दो समय कम शूद्रभव ग्रहण जितने काल और उत्कृष्ट असंख्यात काल तक (लगातार छद्मस्थ-आहारकरूप में रहता है)। (अर्थात्-) कालतः असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणियों तक तथा क्षेत्रत: अंगुल के असंख्यातवें भागप्रमाण (समझना चाहिए।) १३६६. केवलिआहारए णं भंते ! केवलिआहारए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं देसूणं पुव्वकोडिं। [१३६६ प्र.] भगवन् ! केवली-आहारक कितने काल तक केवली-आहारक के रूप में रहता है ? [१३६६ उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट देशोन कोटिपूर्व तक (केवली-आहारक निरन्तर केवली-आहारकरूप में रहता है)। १३६७. अणाहारए णं भंते ! अणाहारए त्ति ० पुच्छा ? गोयमा ! अणाहारए दुविहे पण्णत्ते । तं जहाा- छउमत्थअणाहारए य १ केवलिअणाहारए य२। [१३६७ प्र.] भगवन् ! अनाहारकजीव, अनाहारकरूप में निरन्तर कितने काल तक रहता है ? [१३६७ उ.] गौतम ! अनाहारक दो प्रकार के होते हैं, यथा - (१) छद्मस्थ-अनाहारक और (२) केवली-अनाहारक। १३६८. छउमत्थअणाहारए णं भंते ! ० पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं दो समया। [१३६८ प्र.] भगवन् ! छद्मस्थ-अनाहारक, छद्मस्थ-अनाहारक के रूप में निरन्तर कितने काल तक रहता है ? [१३६८ उ.] गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट दो समय तक (छद्मस्थ-अनाहारकरूप में
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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