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[प्रज्ञापनासूत्रं
[१३६४ प्र.] भगवन् ! आहारक जीव (लगातार) कितने काल तक आहारकरूप में रहता है?
[१३६४ उ.] गौतम ! आहारक जीव दो प्रकार के कहे हैं, यथा- छद्मस्थ-आहारक और केवलीआहारक।
१३६५. छउमत्थाहारए णं भंते ! छउमत्थाहारए त्ति कालओ केवचिरं होइ ?
गोयमा ! जहण्णेणं खुड्डागभवग्गहणं दुसमऊणं, उक्कोसेणं असंखेनं कालं, असंखेजाओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अंगुलस्स संखेजइभाग।
[१३६५ प्र.] भगवन् ! छद्मस्थ-आहारक कितने काल तक छद्मस्थ-आहारक के रूप में रहता है ?
[१३६५ उ.] गौतम ! जघन्य दो समय कम शूद्रभव ग्रहण जितने काल और उत्कृष्ट असंख्यात काल तक (लगातार छद्मस्थ-आहारकरूप में रहता है)। (अर्थात्-) कालतः असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणियों तक तथा क्षेत्रत: अंगुल के असंख्यातवें भागप्रमाण (समझना चाहिए।)
१३६६. केवलिआहारए णं भंते ! केवलिआहारए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं देसूणं पुव्वकोडिं। [१३६६ प्र.] भगवन् ! केवली-आहारक कितने काल तक केवली-आहारक के रूप में रहता है ?
[१३६६ उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट देशोन कोटिपूर्व तक (केवली-आहारक निरन्तर केवली-आहारकरूप में रहता है)।
१३६७. अणाहारए णं भंते ! अणाहारए त्ति ० पुच्छा ?
गोयमा ! अणाहारए दुविहे पण्णत्ते । तं जहाा- छउमत्थअणाहारए य १ केवलिअणाहारए य२।
[१३६७ प्र.] भगवन् ! अनाहारकजीव, अनाहारकरूप में निरन्तर कितने काल तक रहता है ?
[१३६७ उ.] गौतम ! अनाहारक दो प्रकार के होते हैं, यथा - (१) छद्मस्थ-अनाहारक और (२) केवली-अनाहारक।
१३६८. छउमत्थअणाहारए णं भंते ! ० पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं दो समया।
[१३६८ प्र.] भगवन् ! छद्मस्थ-अनाहारक, छद्मस्थ-अनाहारक के रूप में निरन्तर कितने काल तक रहता है ?
[१३६८ उ.] गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट दो समय तक (छद्मस्थ-अनाहारकरूप में