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[प्रज्ञापनासूत्रं
तेरहवा उपयोगद्वार
१३६२. सागारोवउत्ते णं भंते ! ० पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं।
[१३६२ प्र.] भगवन् ! साकारोपयोगयुक्त जीव निरन्तर कितने काल तक साकारोपयोगयुक्तरूप में बना रहता है ?
[१३६२ उ.] गौतम ! (वह) जघन्यतः और उत्कृष्टत: भी अन्तर्मुहूर्त तक साकारोपयोग से युक्त बना रहता है।
१३६३. अणागारोवउत्ते वि एवं चेव । दारं १३॥
[१३६३] अनाकारोपयोगयुक्त जीव भी इसी प्रकार जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक (अनाकारोपयोगयुक्त बना रहता है)।
तेरहवाँ द्वार ॥१३॥ विवेचन - ग्यारहवाँ, बारहवाँ और तेरहवाँ दर्शन, संयत और उपयोग द्वार - प्रस्तुत दस सूत्रों (सू. १३५४ से १३६३ तक) में चक्षुर्दर्शनी आदि चतुष्टय, संयत असंयत, संयतासंयत और नोसंयत, नोअसंयत, नोसंयतासंयत तथा साकारोपयोगयुक्त एवं अनाकारोपयोगयुक्त जीव का स्व-स्वपर्याय में अवस्थानकालमान प्रतिपादित किया गया है।
चक्षुर्दर्शनी का अवस्थान काल - चक्षुर्दर्शनी जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कष्ट कुछ अधिक हजार . सागरोपम तक निरन्तर चक्षुर्दर्शनी बना रहता है । जब कोई त्रीन्द्रिय जीव चतुरिन्द्रियादि में उत्पन्न होकर उस पर्याय में उन्तर्महूर्त तक स्थित रह कर पुनः त्रीन्द्रिय आदि में उत्पन्न हो जाता है, तब चक्षुर्दर्शनी अन्तर्मुहूर्त चक्षुर्दर्शनीपर्याय से युक्त होता है । उत्कृष्ट कुछ अधिक हजार सागरोपम जो कहा है, वह चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रियतिर्यञ्च एवं नारक आदि भवों में भ्रमण करने के कारण समझना चाहिए।
द्विविध अचक्षुर्दर्शनी -१. अनादि-अनन्त-जो जीव कभी सिद्धि प्राप्त नहीं करेगा । २. अनादिसान्त-जो कदाचित् सिद्धि प्राप्त करेगा ।
अवधिदर्शनी का अवस्थानकालमान - जघन्य एक समय और उत्कृष्ट कुछ अधिक दो छियासठ सागरोपम है। वह इस प्रकार - बारहवाँ देवलोक २२ सागरोपम की स्थिति वाला है। उसमें कोई भी जीव यदि विभंगज्ञान लेकर जाए तथा लौटते समय अवधिज्ञान लेकर लौटे तो इस प्रकार बाईस सागरोपम काल विभंगज्ञान का और बाईस सागरोपम काल अवधिज्ञान का हुआ। पूर्वोक्त प्रकार से ही यदि तीन बार विभंगज्ञान लेकर जाए तथा अवधिज्ञान लेकर आए तो ६६ सागरोपम काल विभंगज्ञान का और ६६ सागरोपम काल अवधिज्ञान का हुआ। बीच के मनुष्यभवों का काल कुछ अधिक जानना चाहिए। इस प्रकार कुल कुछ अधिक दो छिपासठ सागरोपम काल होता है। ध्यान में रहे कि विभंगज्ञानी का दर्शन भी अवधिदर्शन ही कहलाता है,
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प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक ३९०