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अठारहवाँ कायस्थितिपद ]
गोमा ! सादीए अपज्जवसिए । दारं ११ ॥
[ १३५७ प्र.] भगवन् ! केवलदर्शनी कितनी काल तक केवलदर्शनीरूप में रहता है ? [१३५७ उ.] गौतम ! केवलदर्शनी सादि-अपर्यवसित होता है ।
बारहवाँ संयतद्वार
[३९१
ग्यारहवाँ द्वार ॥११॥
१३५८. संजए णं भंते ! संजए ति० पुच्छा ?
गोयमा ! जहण्णेणं एक्वं समयं, उक्कोसेणं देसूणं पुव्वकोडिं ।
[१३५८ प्र.] भगवन् ! संयत कितने काल तक संयतरूप में रहता है ?
[१३५८ उ.] गौतम ! (वह) जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट देशोन करोड़ पूर्व तक संयतरूप में रहता है।
१३५९. असंजए णं भंते ! असंजए त्ति० पुच्छा ?
गोयमा ! असंजए तिविहे पण्णत्ते । तं जहा - अणादीए वा अपज्जवसिए १ अणादीए वा सपज्जवसिए २ सादीए वा सपज्जवसिए ३ । तत्थ णं जे से सादीए सपज्जवसिए से जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंत कालं, अणंताओ उस्सप्पिणी ओसप्पिणीओ कालतो, खेत्तओ अवडुं पोग्गलपरियट्टं देसूणं ।
[१३५९ प्र.] भगवन् ! असंयत कितने काल तक असंयतरूप में रहता है ?
[ १३५९ उ.] गौतम ! असंयत तीन प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार - १. अनादि - अपर्यवसित, २. अनादि-सपर्यवसित और ३. सादि - सपर्यवसित। उनमें से जो सादि-सपर्यवसित है, वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट अनन्तकाल तक, (अर्थात्) काल की अपेक्षा- अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणियों तक तथा क्षेत्र की अपेक्षा-देशोन अपार्द्ध पुद्गलपरावर्त्त तक (वह असंयतपर्याय में रहता है) ।
१३६०. संजयासंजए जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं देसूणं पुव्वकोडिं ।
[१३६०] संयतासंयत जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि तक (संयतासंयतरूप में रहता है)।
पुच्छा ?
१३६१. णोसंजए णोअसंजए णोसंजयासंजए णं०
गोयमा ! सादीए अपज्जवसिए । दारं १२ ॥
[१३६१ प्र.] भगवन् ! नोसंयत, नोअसंयत, नोसंयतासंयत कितने काल तक नोसंयत, नोअसंयत, नोसंयतासंयतरूप में बना रहता है ?
[ १३६१ उ.] गौतम ! वह सादि - अपर्यवसित है ।
बाहरवाँ द्वार ॥१२॥