________________
३७६]
[प्रज्ञापनासूत्रं
१३२७. इत्थिवेद णं भंते ! इत्थिवेदे त्ति कालओ केवचिरं होति ?
गोयमा ! एगेणं आदेसेणं जहण्णेणं एक्कं सययं उक्कोसेणं दसुत्तरं पलिओमसतं पुव्वकोडिपुहुत्तमब्भहियं १ एगेणं आदेसेणं एगं समयं उक्कोसेणं अट्ठारस पलिओवमाइं पुव्वकोडिपुहुत्तमब्भइयाइं २ एगेणं आदेसेणं जहण्णेणं एगं समयं उक्कोसेणं चोद्दस पलिओवमाई पुव्वकोडिपुहुत्तमब्भइयाइं ३ एगेणं आदेसेणं जहण्णेणं एगं समयं उक्कोसेणं पलिओवमसयं पुव्वकोडिपुहुत्तमब्भइयं ४ एगेणं आदेसेणं जहण्णेणं एगं समयं उक्कोसेणं पलिओवमपुहुत्तं पुव्वकोडिपुहुत्तमब्भइयं ५।
[१३२७ प्र.] भगवन् ! स्त्रीवेदक जीव स्त्रीवेदकरूप में कितने तक रहता है ?
[१३२७ उ.] गौतम ! १-एक अपेक्षा (आदेश) से (वह) जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक एक सौ दस पल्योपम तक, २-एक अपेक्षा से जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक अठारह पल्योपम तक, ३-एक अपेक्षा से जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक चौदह पल्योपम तक, ४-एक अपेक्षा से जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक सौ पल्योपम तक, ५-एक अपेक्षा से जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक पल्योपमपृथक्त्व तक स्त्रीवेदी स्त्रीवेदीपर्याय में लगातार रहता है।
१३२८. पुरिसवेदे णं भंते ! पुरिसवेदे त्ति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसतपुहत्तं सातिरेगं। . [१३२८ प्र.] भगवन् ! पुरुषवेदक जीव पुरुषवेदकरूप में (लगातार) कितने काल तक रहता है ?
[१३२८ उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट कुछ अधिक सागरोपमशतपृथक्त्व तक (वह पुरुषवेदकरूप में रहता है।)
१३२९. नपुंसगवेदे णं भंते ! णपुंसगवेदे त्ति० पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं एवं समयं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। [१३२९ प्र.] भगवन् ! नपुंसकवेदक (लगातार) कितने काल तक नपुंसकवेदकपर्याययुक्त बना रहता
[१३२९ उ.] गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट वनस्पतिकालपर्यन्त वह लगातार नपुंसकवेदकरूप में रहता है।
१३३०. अवेदए णं भंते ! अवेदए त्ति० पुच्छा ?
गोयमा ! अवेदए दुविहे पण्णत्ते । तं जहा-सादीए वा अपज्जवसिए १ सादीए वा सपज्जवसिए २। तत्थ णं जे से सादीए सपज्जवसिए से जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं अंतोमुहत्तं। दारं ६॥