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________________ अठारहवाँ कायस्थितिपद ] गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसतपुहुत्तं सातिरेगं । [१३१४ प्र.] भगवन् ! बादर पर्याप्तक, बादर पर्याप्तक के रूप में कितने काल तक बना रहाता है ? [१३१४ उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट कुछ अधिक शतसागरोपमपृथक्त्व तक (बादर पर्याप्तक के रूप में रहता है ।) [ ३७१ १३१५. बादरपुढविक्वाइयपज्जत्तए णं भंते ! बादर ० पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाई वाससहस्साइं । [१३१५ प्र.] भगवन् ! बादर पृथ्वीकायिक पर्याप्तक कितने काल तक बादर पृथ्वीकायिक पर्याप्तक रूप में रहता है ? [१३१५ उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्षों तक (वह बादर पृथ्वीकायिक पर्याप्तकरूप के रहता है ।) १३१६. एवं आउक्काइए वि । [१३१६] इसी प्रकार (बादर) अप्कायिक (के विषय में) भी (समझना चाहिए ।) १३१७. तेडक्वाइयपज्जत्तए णं भंते ! तेडक्वाइयपज्जत्तए ० पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाई राइंदियाइं । [१३१७ प्र.] भगवन् ! तेजस्कायिक पर्याप्तक (बादर) तेजस्कायिक पर्याप्तक के रूप में कितने काल तक रहता है ? [१३१७ उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यात रात्रि - दिन तक ( वह तेजस्कायिक पर्याप्तक के रूप में रहता है ।) १३१८. वाउक्काइए वणस्सइकाइए पत्तेयसरीरबायरवणस्सइकाइए य पुच्छा ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाई वाससहस्साइं । [१३१८ प्र.] भगवन् ! वायुकायिक, वनस्पतिकायिक और प्रत्येकशरीर बादर वनस्पतिकायिक (पर्याप्तक) कितने काल तक अपने-अपने पर्याय में रहते हैं ? [१३१८ उ.] गौतम ! ये जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्षों तक अपने-अपने पर्याय में रहते हैं । १३१९. णिगोयपज्जत्तए बादरणिगोयपज्जत्तए य पुच्छा ? गोयमा ! दोणि वि जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ।
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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