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________________ ३६८] | प्रज्ञापनासूत्रं [१२९८ उ.] गौतम ! (वह) जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्षों तक (वनस्पतिकायिक पर्याप्त पर्याय में बना रहता है।) १२९९. तसकाइयपजत्तए णं पुच्छा ? गोयमा ! जहणणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमयपुहत्तं । [१२९९ प्र.] भगवन् ! जसकायिक-पर्याप्तक कितने काल तक त्रसकायिकपर्याय में बना रहता है ? [१२९९ उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट कुछ अधिक शतसागरोपम-पृथक्त्व तक (वह पर्याप्त त्रसकायिक रूप में रहता है।) १३००. सुहुमे णं भंते ! सुहुमे त्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा !जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं असंखेनं कालं असंखेजाओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ असंखेजा लोगा। [१३०० प्र.] भगवन् ! सूक्ष्म जीव कितने काल तक सूक्ष्म रूप में रहता है ? [१३०० उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट असंख्यातकाल तक, (अर्थात्) कालतः असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणियों तक और क्षेत्रत: असंख्यातलोक तक (सूक्ष्म जीव सूक्ष्मपर्याय में बना रहता है।) - १३०१. सुहुमपुढविक्काइए सुहुमआउक्काइए सुहुमतेउक्काइए सुहुमवाउक्काइए सुहुमवणस्सइकाइए सुहुमणिगोदे वि जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेजं कालं, असंखेजाओ उस्सप्पिणिओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ असंखेज्जा लोगा। [१३०१] इसी प्रकार सूक्ष्म पृथ्वीकायिक, सूक्ष्म अप्कायिक सूक्ष्म तेजस्कायिक, सूक्ष्म वायुकायिक, सूक्ष्म वनस्पतिकायिक एवं सूक्ष्म निगोद भी जघन्य अन्तर्मुहूर्त काल तक और उत्कृष्ट असंख्यातकाल तक(अर्थात्-) कालत:- असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणियों तक एवं क्षेत्रतः असंख्यात लोक तक (ये स्वस्वपर्याय में बने रहते हैं।) १३०२. सुहुमे णं भंते ! अपज्जत्तए त्ति ० पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं । [१३०२ प्र.] भगवन् ! सूक्ष्म अपर्याप्तक, सूक्ष्म अपर्याप्तक रूप में कितने काल तक लगातार रहता है ? [१३०२ उ.] गौतम ! (वह) जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त तक रहता है। १३०३. पुढविक्काइय-आउक्काइए-तेउक्काइए-वाउक्काइय-वणस्सइकाइयाण य एवं चेव। [१३०३] (सूक्ष्म) पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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