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अट्ठारसमं कायट्टिइपयं
अठारहवाँ कायस्थितिपद
कायस्थितिपद के अन्तर्गत बाईस द्वार
१२५९. जीव १ गतिंदिय २-३ काए ४ जोगे ५ वेदे ६ कसाय ७ लेस्सा ८ य ।
सम्म ९ णाण १० दंसण ११ संजय १२ उवओग १३ आहारे १४ ॥२११॥ भासग १५ परित्त १६ पज्जत्त १७ सुहुम १८ सण्णी १९ भव स्थि २०-२१ चरिमे २२ य । एतेसिं तु पदाणं कायठिई होति णायव्वा ॥ २१२ ॥
[१२५९.] अधिकारसंग्रहणीगाथाओं का अर्थ ] (१) जीव, (२) गति, (३) इन्द्रिय, (४) काय, (६) वेद, (७) कषाय, (८) लेश्या, (९) सम्यक्त्व, (१०) ज्ञान, (११) दर्शन, (१२) संयत, (१३) उपयोग, (१४) आहार, (१५) भाषक, (१६) परीत, (१७) पर्याप्त, (१८) सूक्ष्म, (१९) संज्ञी, (२०) भव (सिद्धिक), (२१) अस्ति (काय) और (२२) चरम, इन पदों की कायस्थिति जाननी चाहिए | ॥२११२११ ॥
विवेचन - कायस्थितिपद के अन्तर्गत बाईस द्वार - प्रस्तुत सूत्र में जीवादि बाईस पदों को लेकर कायस्थिति का वर्णन किया जाएगा, इसका दो गाथाओं द्वारा निर्देश किया गया है।
कायस्थिति की परिभाषा - कायपद का अर्थ है- जीव- पर्याय । यहाँ कायपद से पर्याय का ग्रहण किया गया है। पर्याय के दो प्रकार हैं- सामान्यरूप और विशेषरूप । जीव का विशेषणरहित जीवत्वरूप सामान्यपर्याय है तथा नारकत्वादिरूप विशेषपर्याय है । इस प्रकार के पर्यायरूप काय की स्थिति - अवस्थान कायस्थिति है । तात्पर्य यह है कि इस प्रकार सामान्यरूप अथवा विशेषरूप पर्याय से किसी जीव का अविच्छिन्नरूप से (निरन्तर) होना कायस्थिति है ।
प्रथम-द्वितीय : जीवद्वार - गतिद्वार
१.
१२६०. जीवे णं भंते ! जीवे त्ति कालओ केवचिरं होइ ?
गोयमा ! सव्वद्धं । दारं १ ॥
प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक ३७४